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श्रीअज्ञातसूरिविरचिता ते वनसिंह रायनइं सुरसुंदरी राणी छइ । पुण ते राणी किसी छइ ! लावण्यरूपीउं पीयूष अमृत तेणिइं करी जेह राणीनु गात्र देह पवित्र छइ । सत प्रधान [ध] म पात्र स्थानक छ । अनइ वली राणी केहवी छह ! मतिहे(हि) विशिष्ट रंभा तिलोत्तमा इंद्रनी इंद्राणी तेपाहिं अतिहिं विशिष्ट रूप छइ ॥३॥
तत्कुक्षिभूः कालकनामधेयः, कामानुरूषोऽजनि भूपसूनुः ।
सरस्वती रूपवती सुशीलवती स्वसा तस्य नरेन्द्रसुनोः ॥४॥ ते सुर]सुंदरी राणीनी कूष(स)ई ऊपनु कालिक इसिई नमिई, नामिइं रूपवंति सुसोतावती लावण्यवती भगिनी बहिनी हुँती वर्तइ ॥४॥
अथान्यदोद्यानवने कुमारो, गतो युतः पञ्चशतैश्च पुम्भिः ।
दृष्ट्वा मुनीन्द्रं गुणसुन्दराख्यं, नत्योपविष्टो गुरुसंनिधाने ॥५॥ अथ एतलानु अनन्तर ते कालिक कुमर पांचसई पायक परवरिउ उद्यानवनमाहि गिउ । तुरंगम खेलाविवा भणीनइ । तेसिइ ते बनमाहि श्रीगुणसुंदरसूरि पुहता ! वृक्ष आंबानु ते हेठलि बइठा दीठा । कालिक कुमरिई गुरु दीठा । पूठिई तुरंगमनी रामति मूकीनइ गुरु वांधा। भागलि जई बइठु परिवारसहित ॥५॥
विद्युल्लतानेकपकर्णताललीलायितं वीक्ष्य नरेन्द्रलक्ष्म्याः ।
युष्माशाः किं प्रपतन्ति कूपे, भवस्वरूपे मुविवेकिनोऽपि ॥६॥ हे नरेंद्र ! अहो राजन् ! तम्हश्रीषा पुण्यवंत भाग्यवंत संसाररूपीया कुयामाहि किल्या कारण पडई छई। संसार केहषु छइ ! जिसिउ वीजनु शात्कार चपल हुइ । जिस्या गजेंद्र हस्तीना कर्ण कान चपल हुई। जिसिउँ संध्यातणु राग क्षण एकमाहि विश्रार थइ । जिसिउं अश्व घोडातणु पुच्छ चपल हुइ । जिस्या समुदनी कलोल चपल हुई। एहवी राज्यनी लक्ष्मी चपल छइ। तम्हश्रीषानई एहवा संसार चपलमाहि राज्यलक्ष्मी भनेरीइ लक्ष्मी सर्वमंडाण चपळ वर्चई। सम्हो मुविवेकी पुण्यवंत । एहवइ संसारि वासि तम्हनइ वसवा वुकु नही ॥६॥
एवं परिज्ञाय कुमार ! शुद्धबुद्धिं कुरुष्वाश मुधर्ममाग ।
आकण्ये कर्णामृतष्टिकल्पं, गुरोर्वचः शीघ्रमिति प्रबुद्धः ॥७॥ एहवु गुरुनु उपदेसां सांभलीनइ कालिक कुमरनइ धर्मकरणी करवानी बुद्धि ऊपनी । गुरुना वचन अमृत समान सांभलीनइ संसारनइ विषइ विराग ऊपनु ! मनि वैराग्य ऊपर्नु ! संसार अणगतु(म) थिउ । चारित्र उपरि भाव उपनु ॥७॥
आदात् तदा पञ्चशतीपदातियुक्तो व्रतं म्ररिपदं स लेभे ।
सरस्वती तद्भगिनी च पश्चाजग्राह दीक्षां निजबन्धुबोधात् ॥८॥ तदा ताणइ समइ तेणिइं प्रस्तावि कालिक कुमरिई वैराग्यनइ योगिइं माता पिता मोकलावी प्रीछवीनइ श्रोगुणसुंदरसूरि कन्हलि दीक्षा लीधी। पांचसई पायके कालिककुमर साथइ दीक्षा लोधी । अनइ केतइ कालि ते कालिक रिपिनइ आचार्य पद हवं गच्छनायक कहवा । अनइ सरस्वती बहिनिई ति वार पूठिइ केतलई कालि गिई हुंतह आपणा भाइ कालिककुमर कन्हलि दीक्षा लोधी !!८! -
श्रीकालिकाचार्यवरा धरायां, कुर्वन्ति भव्यावनिधर्मदृष्टिम् ।
अथान्यदाऽवन्तिपुरीमगुस्ते, सरस्वती चापि जगाम तत्र ॥९॥ , कालिक • P1 २ कालानुरूपो S३ • तो यतःSI
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