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क्रिया-कोश टीका - सावद्यक्रियायाअभावाद क्रियोऽक्रियत्वाञ्च प्राणिनामलूपकोऽव्यापादकोयावदेकांतेनेवासौ पंडितो भवति ।
सावध क्रिया का अभाव होने से भिक्षु को अक्रिय कहा गया है । .०४.२ अकिरिय · अक्रिय
-पण्ण० प २२। सू १५७३ ! पृ० ४७६ टीका--तत्र ये असंसारसमापन्नकास्तेसिद्धाः, सिद्धाश्च देहमनोवृत्त्यभावतोऽ क्रियाः Ixxxi
तत्र ये शैलेशीप्रतिपन्नकास्ते सूक्ष्मबादरकायवाङ्मनोयोगनिरोधादक्रियाः ।
जो जीव क्रिया रहित होते हैं ; क्रिया नहीं करते हैं वे अक्रिय हैं। असंसारसमापन्न्क सिद्ध जीव देह, मन आदि की वृत्ति के अभाव में अक्रिय होते हैं । शैलेशत्व को प्राप्त संसार समापन्नकजीव सूक्ष्म बादर काय-वचन-मन योग का निरोध होने से अक्रिय होते हैं । ०४३ अकिरियआया - अक्रिय आत्मा
--सूय० श्र १ । अ १० । गा १६ । पृ० १२५ मूल-जे केई लोगंमि उ अकिरियआधा।
टीका-ये केचन अस्मिन् लोके अक्रियआत्मायेषामभ्युपगमे तेऽक्रियात्मनः सांख्यास्तेषां हि सर्वव्यापित्वादात्मा निष्क्रयः पठ्यते ।
लोक में कई ऐसे पुरुष हैं जो आत्मा को अक्रिय मानते हैं। यथा --- सांख्यमतवादी। .०४.४ अकिरिया-अक्रिया
-ठाण० स्था है ! उ ३ । सू १८७ । पृ० २१५ मूल-तिविहे मिच्छत्ते पन्नत्ते, तेजहा - अकिरिया अविणए अण्णाणे । अकिरिया तिविहा पन्नत्ता, तंजहा-पओगकिरिया, समुदाणकिरिया, अन्नाणकिरिया।
जो क्रिया दुष्ट उद्देश्य में प्रयुक्त हो वह अक्रिया । जो किया भली नहीं है वह अक्रिया । मिथ्यात्व के तीन भेदों में अक्रिया एक भेद हैं। .०४५ अकिरिया अक्रिया
-पण्ण ० प २२ । सू१५७३ ! पृ० ४७६ । मूल-जीवाणं भंते ! कि सकिरिया अकिरिया ? टीका--सिद्धाश्च देहमनोवृत्त्यभावतोऽक्रियाः।
शैलेशी प्रतिपन्नकास्ते सूक्ष्मबादरकायवाङ्मनोयोगनिरोधाद क्रियाः । क्रिया का अभाव-अक्रिया। मन-वचन-काय योगों के निरोध से होने वाला किया का अभाव- अक्रिया। अशरीरी सिद्धों के शारीरिक क्रिया नहीं होने से क्रिया का अभाव-अकिया।
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