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विषय
७३६७ तिर्यच पंचेन्द्रिय भव से अनन्तर मनुष्य भव में अंतक्रिया
*७३६८ मनुष्यभव से अनन्तर मनुष्य भव में अंतक्रिया
·७३·६'६ वाणव्यंत्तर - ज्योतिषी वैमानिक देवसे अनंतर मनुष्य भव में अंतक्रिया ७३७ सलेशी पृथ्वी - अप्-वनस्पतिक। यिक जीव और अनन्तर भव में अंतक्रिया ७३८ कहाँ से अनंतर मनुष्य भव में आकर जीव तीर्थंकरत्व पाकर अंतक्रिया करता है
७३६ कौन जीव अंतक्रिया करते हैं।
*७३६१ दया-धर्म की प्ररूपणा करने वाला जीव अंतक्रिया करता है ७३६२ निर्ग्रन्थ प्रवचन में स्थित जीव अंतक्रिया करता है
७३६३ संवृत अनगार अंतक्रिया करता है
७३६४ एजनादि क्रिया नहीं करने वाला जीव अन्तक्रिया करता है ७३६५ अक्रिय जीव उसी भव में अन्तक्रिया करता है
७३६६ तेरहवें क्रियास्थान में वर्तमान जीव अन्तक्रिया करता है
७३६७ केवली अन्तक्रिया करते हैं
७३.१० केवली जीव अन्तक्रिया कैसे करते हैं ?
७३.११ जीव किससे अन्तक्रिया करता है।
७३१११ सम्यक्त्व पराक्रम से जीव अन्तक्रिया करता है
'७३११२ व्यवदान से जीव अन्तक्रिया करता है।
- ७३.११ ३ सर्वभावप्रत्याख्यान से जीव अन्तक्रिया करता है *७३११४ कायसमाधारणता से
७३.११ ५ चारित्रसम्पन्नता से *७३*११*६ यथाख्यात चारित्र से ७३११७ केवली आराधना से ७३.११८ ज्ञान-दर्शन- चारित्र की आराधना से अंतक्रिया
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७३.१२ कौन जीव अंतक्रिया नहीं करते हैं ?
७३.१२१ हिंसा की प्ररूपणा करने वाले जीव
७३.१२२ प्रथम बारह क्रियास्थान में वर्तमान जीव अंतक्रिया नहीं करता है
७३१२३ असंवृत अणगार अंतक्रिया नहीं करता है
७३१२४ छद्मस्थ-अवधिज्ञानी परमावधिज्ञानी अंतक्रिया नहीं करते हैं। ७३.१२५ एजनादि से सक्रिय जीव अंतक्रिया नहीं करता है
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