________________
३५०
क्रिया-कोश जहा पढमसए चउत्थुइसे (आलावगा) तहा णेयव्वा, जाव अलमत्थुत्ति वत्तव्वं सिया।
--भग० श ५ । उ ५। प्र १ । पृ० ४७८ भगवती श१ । उ ४१ प्र १५६ १६३ की भुलावण (ग) एवं जहा जीवाभिगमे जाव-सम्मत्तकिरियं वा मिच्छत्तकिरियं वा।
-भग० श७। उ४1 प्र१1 पृ० ५१६ जीवाभिगम प्रतिपत्ति ३ तिरिय उ २ । सू १४ को भुलावण (घ) छउमत्थे णं भंते ! मणूसे तीयमणंतसासयं समयं केवलेणं संजमेणं० ? एवं जहा पढमसए चउत्थे उद्देसए तहा भाणियव्वं, जाव अलमत्थुः ।
-भग० श ७ । उ८1 प्र१। पृ० ५२२ भगवती श१। उ ४१ प्र १५१-१६३ की भुलावण-- (ङ) एवं किरियापयं निरवसेसं भाणियव्वं -- जाव-मायावत्तियाओ किरियाओ विसेसाहियाओ।
-भग० श ८ ! उ ४ । प्र १ पृ० ५४८ प्रज्ञापना क्रियापद २२ । सू ११-१६ की भुलावण(च) निम्गंथे पावयणे सच्चे अणुत्तरे केवले जहा आवस्सए जाव सव्वदुक्खाणमंतं करेंति।
-भग० श६ । उ ३ । प्र २१ । पृ० ६०२ आवश्यक आव ४ । सू७ को भुलावण
६६.२१ छुटे हुए पाठ :.१६५ निक्षेपों की अपेक्षा अप्रत्याख्यान क्रिया का विवेचन :[ कृपया पृ० ४३-४४ देखें - यहाँ हिन्दी अर्थ दिया गया है । ]
णामं ठवणा दविए अइच्छ पडिसेहए य भावे य। . एसो पञ्चक्खाणस्स छविहो होइ निक्खेवो॥
-सूय० नि गा १७६ प्रत्याख्यान का छः प्रकार से निक्षेप होता है-नाम, स्थापना, द्रव्य, अदित्सा, प्रतिषेध तथा भाव ।
टोका--नामस्थापनाद्रव्यादित्साप्रतिषेधभावरूपः। प्रत्याख्यानस्यायं षोढा निक्षेपः । तत्रापि नामस्थापने सुगमे ।
नाम, स्थापना, द्रव्य, अदित्सा, प्रतिषेध तथा भाव-प्रत्याख्यान के ये छ: निक्षेप होते हैं । इन में नाम और स्थापना निक्षेप का विवेचन सुगम है। अतः यहाँ नहीं किया
जाता है।
"Aho Shrutgyanam"