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करना, अर्हत प्रवचन की प्रभावना करना तथा जैन दर्शन और वाड्मय का प्रचार-प्रसार करना तथा इसके गहन गम्भीर तत्वज्ञान के प्रति सर्व साधारण को आकृष्ट करना और इस तरह समाज की सेवा करना ही है ।
अस्तु —– इस महान और ऐतिहासिक कार्य के सुसम्पादन और सम्पूर्ति में पर्याप्त राशि की आवश्यकता होगी। जिसके लिए हम जैन समाज के हर व्यक्ति से साग्रह अनुरोध करते हैं कि इस कार्य को गतिशील रखने के लिए यथासंभव सहायता करें तथा मुक्तहस्त से राशि प्रदान कर समिति को अनुग्रहीत करें ।
समिति के सभी उत्साही सदस्यों, शुभचिन्तकों एवं संरक्षकों के साहस और निष्ठा का उल्लेख करना भी मेरा कर्तव्य है जिनकी इच्छाएँ एवं परिकल्पनाएँ मूर्त रूप में सामने आ रही हैं।
कोश- सम्पादन और प्रकाशन में परोक्ष और अपरोक्ष रूप में प्राप्त सहायता और सुकावों के लिए भी हम सबके प्रति बिना नाम उल्लेख किये ही आभार प्रगट करते हैं और आशा है कि उनकी सद्भावना सदा हमारे साथ रहेगी ।
अन्त में हम श्री भगवतीलाल सिसोदिया ट्रष्ट, जोधपुर के अधिकारियों को तथा उनके मैनेजिंग ट्रष्टी श्री जबरमलजी भंडारी को विशेष धन्यवाद देते हैं जिन्होंने 'क्रियाकोश' के प्रकाशन का सम्पूर्ण व्यय वहन किया है।
जैन दर्शन समिति में अभी तक इतने धन का संग्रह नहीं हुआ है कि 'क्रियाकोश' का भी 'लेश्याकोश' की तरह निर्मूल्य वितरण किया जा सके । अतः हमको इसका मूल्य ६० १५) ( अंके पन्द्रह रुपया ) रखना पड़ा है। जैन के सभी सम्प्रदाय के धनी मानी तथा प्रवचन प्रभावना के इच्छुक श्रमणोपासकों से हमारा निवेदन है कि 'क्रियाकोश' को क्रय करके अंततः अपने सम्प्रदाय के विद्वानों में, भंडारोंमें, पुस्तकालयों में इसका यथोचित वितरण करने में हमारा सहयोग दें । सभी नगरों के भंडारों और पुस्तकालयों में 'क्रियाकोश' के रहने से श्रमण वर्ग को भी यह पुस्तक सहजतया समुपलब्ध हो सकेगी। भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में भी इसका वितरण होना परम आवश्यक है । आशा है इस पुस्तक के सम्यक् वितरण में हमें सभी श्रमणोपासकों का निर्बाध सहयोग प्राप्त होगा ।
कलकत्ता,
दीपावली, विक्रम सं० २०२६
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"Aho Shrutgyanam"
मोहनलाल बैद
मंत्री जैन दर्शन समिति