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५७ ५८ ५९ ६० ६१ ६२ ६३ ६४ ६५ ६६ ૬૭
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वार्धम् आया संमुखं विलोकयू बम विलोकम् मौनी भू मार्गे चन् वयं कृतम् मस्तकं भद्रीक बाहरा धाविता का विकाले दीपो वर्ण्यताम् घटक योजनाष्ट्री ૬૮ कि अथकल्ये नाऽऽगम्यते गोष्ठों कुर्वाणा उपविष्टाः दिवं सन्ति व्यकिदा वा स्वादृशा मत्फुत्क्रतेन बड़ीयन्ते छ न नमस्कारा मानिता:
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७०
७१ ७२
७३ पृच्छनेन सृतम् स्वया किं स्यात्
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अथ किमपि रधुं न शकतं मया
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न शीतं लगन भावि ढोस् पोरत्वम् जोवन्नरो भद्राणि लभते
कीटकोपरि कटकारंभः
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७९
३-२, ३-३ ६-१८ ३३७, २५-२६ २-२१ १-२० १७०-२३ १२४-५ ८६-६ ३२०-२७ १७२-२७ २६७-५
मायुं भद्राबवु बाहर धाई बलु-मोड दीवो बधेरो घडियाजोजन सांढणी
५५, ४-५ आवकाळ केम आबवानु' यतु नथी
२-११ २०९, ३-४
बात करता बेठा इता सनया के सळग
२०४ २८ तारा जेबा मारी फूके रखी जाय
७८-५
४५.६
बास छाख नमस्कार माल्या
१६९-१९ २०१-२
पूछवाची सयु वारायी सुं थाय तेम के
१७०-२३ आज कोई पण रांधी नथी शकायु ३७-२२ माराथी क्यांक ठंडी म बागी जाय
ढोळनी पोट
जीवतो नर भद्र पामे कीडी उपर कटक
१७३-२
ये आव
जो बाट जोवी
२५२-९, २९८-१२
मूंगा थाई दु रस्ते चालती साद' क
या यादी सारा प्रमागम लंबावी शकाय सेम छे. वाक्योनी आखो वाक्यरचना, तेमनो ढाळो अने शैली मोटे भागे गुजरातीना होवातु लाग्या करे छे. संस्कृतना वेतमा गुजराती भाषा होबा अनेक स्थळे प्रतीत थाय छे. शताब्दीओ सुत्री ( अने बाजारू हिन्दीनी जेम) विविध माषी प्रदेशमा राष्ट्रभाषा तरीके - संस्कृत भाषा तरीके अखिल भारतीय व्यवहारमा रहेता, संस्कृत बेटी बधी बाळी वळे तेवी बनी शकती ते वस्तु प्रबन्धोनी भाषा स्पष्टपणे बतावो आपे छे. आम मान्य भाषाना उद्भव अने घडतरनी व्यापक दृष्टि पण प्रबन्धोनी भाषा घणी रसप्रद जणाशे.
"Aho Shrutgyanam"
(४) कथाओ विशे दूंकी नोंध
'प्रबन्ध पंचशती'मा पूर्ववर्ती प्रवन्ध साहित्यमाथी लंघेको अतिहासिक अने अनुभुत्यात्मक साममी उपरति सामान्य कथा-साहित्यनी सामग्री पण माटा प्रमाणमा भावेळी के थे रीते कदाच