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________________ प्रकाण्ड विद्वान् अने येइल युनिवर्सिटीना संस्कृतना अध्यापक सद्गत फ्रन्कलिन अजर्टने वीश वर्षना अभ्यासने परिगामे १९५३ मां “बुद्धिस्ट हायब्रिड संस्कृत" विरोना व्याकरण अने शब्दकोश प्रसिद्ध कर्या. जैन संस्कृत आवा कोई प्रखर विद्वानना सतत अनुशीलननो लाभ मेळवका हजी सुधी भाग्यशाळी नथी बन्यु छतां तेनां अमुक अमुक पासांओनु, अथवा तो व्यक्तिगत कृतिओना प्रयोगोनु अध्ययन समय समय पर अनेक अभ्यासीओने हाथे धतु रहयु छे. जैन संस्कृतना महत्त्व तरफ विद्वानोनु लक्ष्य खेंची तेनां जुदा जुदां पासांओ तारवीने अक विशिष्ट अध्ययन पहेलवहेलां प्रस्तुत करवानो यश अमेरिकाना महान संस्कृत विद्वान सद्गत मोरिस ब्लूमफिल्डने फाळे जाय छे. तेमणे सन् १९२४ मा जर्मन विद्वान वाकलीगेलने समर्पित सन्मानप्रन्ध Antidoron मां प्रकाशित Some aspects of Jain Sanskrit-आ लेखमां नीचेना जैन कधायोमाथी विशिष्ट भाषासामग्री तारेवी आपीने तेनी विचारणा करेली - 'अघटकुमार कथा' 'भरटकद्वात्रिंशिका' 'शालिभद्रचरित्र' 'अंबडचरित्र' 'धर्मपरीक्षा' हेमविजयकृत 'कवारत्नाकर' 'कबाकोश' 'पालगोपालकथानक' 'पंचदंडछत्रप्रबन्ध' 'परिशिष्टपर्वन्' भावदेवसूरिकृत 'मल्लिनाथचरित' 'प्रबन्धचिन्तामणि' 'प्रभावकचरित' हेमचन्द्रकृत 'महावीरचरित' विनयचन्द्रकृत 'पार्श्वनाथचरित' 'रौहिणेयचरित' 'समरादित्यकथासंक्षेप' 'सिंहासनद्वात्रिंशिका' 'उत्तमकुमारचरित'. ___ जैन संस्कृतनी केटलीक विशिष्टताओ अने लक्षणो पांच वर्ग नीचे तेमणे गोठवीने मूक्यां छे. ते पाच वर्गो आ प्रमाणे : (१) गुजराती वगेरे स्थानिक बोलीओनो प्रभाव दर्शावता प्रयोगो. (२) प्राकृत शब्दसामग्री अने व्याकरणप्रयोगोनो स्वीकार अने तेमनु संस्कृतीकरण. (३) शुद्ध संस्कृत शब्दोनो पर क्वचित अतिसंस्कार . (४) संस्कृत व्याकरणसाहित्य अने कोशसाहित्यमांथी सीधी ज केटलीक सामग्रीनो स्वीकार. (५) केटलीक एवी पण सामग्री जोवा मळे छे, जेने माटे प्रशिष्ट भाषामां के स्थानिक बोलीओमां कशो आधार नथी, जे विशिष्टपमे जैन अंश छे... ब्लूमफिल्डना आ दृष्टिपूर्ण व्यवस्थित लेखथी जैन संस्कृतना शास्त्रीय अभ्यासनी दिशा स्पष्ट भई अने पछीना प्रयासो माटे ते घणो प्रेरक बन्यो. ते पूर्व पग "उपमितिभवप्रपाकथा"ना संपादनमा पिटर्सन अने याकोबी विशिष्ट संस्कृत शब्दो अने प्रयोगोनी एक यादी भूमिकामां आपेली. __ पूर्णभद्रकृत "पंचाख्यानक'ना तेमना संपादनमा हर्टले, 'जैन गुर्जरकविओ'नी भूमिकामां मो. द. देशाईए, हेमचन्द्राचार्यना 'त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित'ना अंग्रेजी भाषान्तरना जुदा जुदा खंडोमां हेलन जोन्सने असाधारण के विरल संस्कृत शब्दो अने प्रयोगो तारबीने अर्थ साथे आया छे. प्राकृत अने जैन साहित्यना मूर्धन्य विद्वान आदिनाथ नेमिनाथ उपाध्ये सिंघी जैन ग्रन्थमालामा प्रकाशित हरिषेणकृत 'बृहत्कथाकोश'नी तेमनी भूमिकामां ( १९४३ ) जैन संस्कृत विशेना पूर्ववर्ती अध्ययनोनो ख्याल आपीने 'बृहद्कथाकोश'मांथी तारवेला नोंधपात्र प्रयोगोनी अक विस्तृत सार्थ यादी रजू करी छे. पण अमुक कृतिओ लईने तेमांना अमुक अमुक दृष्टिले नोंधपात्र बधा शब्दो अने प्रयोगोनी पद्धतिसरनी यादी अर्थ अने "Aho Shrutgyanam"
SR No.009525
Book TitlePanchashati Prabodh Sambandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMrugendravijay
PublisherSuvasit Sahitya Prakashan
Publication Year1968
Total Pages456
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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