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(९) जावड़-कथा-आ कृतिनी हस्त प्रत बीकानेर-बड़ा-उपाश्रयना भंडारमा छे. प्रायः अप्रकाशित छे.
(१०) भक्तामरस्तोत्र माहात्म्य, (११) पंचवर्गसंग्रह नाममाला. (१२) उणादिनाममाला.
(१३) अष्टकर्मविपाक ( कर्मविपाक. ) * प्रस्तुत ग्रंथ परत्वे आछो द्रष्टिपात:
प्रस्तुत 'प्रबन्ध पंचशती' ग्रंथ ४ अधिकारमा विभक्त छे. तेमा ६०० उपरांत कथा-प्रबन्धोनो संग्रह छे. अधिकार दीठ प्रवन्धोनी संख्या आ प्रमाणे छेअधिकार
प्रबन्ध-संख्या
१ - २०३ २०४ - ४२६ ४२७ - ४७
ग्रन्थकारे कथा-प्रबन्धोनुं जे आ विस्तृत संकलन-रचना करी छे तेमा तेमणे अन्य आधार. भूत ग्रंथोनो उपयोग को छे अम तेमना जशब्दो परथी कही शकाय तेम छे. किश्चिद्गुरोराननतो निशम्य, किश्चिद निजान्याविकशाख तश्च" ग्रंथकार, आधारभूत जैन-जैनेतर ग्रंथोनो उपयोग कर्यानुं पण नोंधे छे. अने ते रीते आ ग्रंथना धणाखरा प्रबन्धो के कथा-सामग्री प्रबन्धकोश, प्रबन्धचिन्तामणि, पुरातनप्रवन्धसंग्रह, उपदेशतरंगिणी, आवश्यकनियुक्ति-टीका इत्यादि ग्रंथोमाथी ळेवामां आवी छे. हितोपदेश के पंचतंत्रने अनुसरती केटलीक आख्यायिकाओनो पण आमा समावेश
तदुपरांत, गुरु-परंपराथी उपलब्ध कथा-साहित्यनो जुनो वारसो पण आमा मचवायेलो छे. या दृष्टिले शुभशील गणिनी आ रचना घणी महत्वपूर्ण छे.
शुभशीले मोटे भागे सरल संस्कृतमा कथा-साहित्यनुं सर्जन कयु छे. तेथी ग्रंथकारनो उद्देश आ रोते कथा-साहित्यनु संकलन करवा द्वारा ओ विशेनु साहित्य अकत्रित करी तेने लोक. भोग्य बनाची, कथा-वार्ताना माध्यम द्वारा जनताने धर्माभिमुख बनाववानुहोइ सके. अने आ लोकप्रिय मार्ग पण छे
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शुभशीलगणिकृत ग्रंथोनी नोंध. "जैन धर्मप्रकाश" ( वि० सं० २०२२ ना अंक १) मा छपायेला प्रो. ही० १० कापडियाना लेखना आधारे तयार करी छे.
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