________________
स-परिशिष्टम् देवदेवस्स जं छत्तं तस्स छत्तस्स मोमओ। तेण छाएमि अप्पाणं मा मे हिंसंतु रक्खगा ॥ १९ ॥ देवदेवस्स जं छत्तं तस्स छत्तस्स जो झओ । तेण छाएमि अप्पाणं मा मे हिंसंतु जोदणी ॥ २० ॥ देवदेवस्स जं छत्तं तस्स छत्तस्स जो झओ ।
तेण छाएमि अप्पाणं मा मे हिंसंतु साइणी ॥ २१ ॥ देव०,, ,, ,, मा मे हिंसंतु डाइणी ॥ २२ ॥ " , , , मा मे हिंसंतु चोरगा ॥ २३॥
मा मे हिंसंतु वालगा ॥ २४ ॥
मा मे हिंसंत हिंसगा ॥ २५ ॥ " , " , मा मे हिंसंतु मूसगा ॥ २६ ॥ , , , , मा मे हिंसंतु मुग्गला ॥ २७ ॥ "" " " मा मे हिंसंतु गुज्झगा ॥ २८ ॥ पाससामि जो नमइ तिसंझं हलिसहि जम्म वि जाइ अझं । कमठमहासुरकयउवलग्ग झाडिअकोवं वझं इस ॥ २९॥ मुहि चंदप्पह हियइ जिणु मत्थइ पारिसनत्थ । इणि मुन्भिहिं मुभिउ को फेडणइ समस्थ ? ॥३०॥ उरि मुद्रि सिरिमुद्र पायमुद्र । इणि मुद्रि मुदिउ हिंसइ चारि समुद्र ॥ ३१ ॥ संखिहि तरिहि आहविध सामि ! दिनिअमुद्र : एअ दुलंधी कोइ न लंघइ पारसनस्थि अमुद्र ॥ ३२॥