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प्रास्ताविक निवेदन।
६११. तीर्थकल्पके समविषयक अन्य ग्रन्थ
विस्तृत जैन इतिहासकी रचनाके लिये, जिन ग्रन्थोंमेंसे, विशिष्ट सामग्री प्राप्त हो सकती है उनमें (१) प्रभावकचरित्र, (२) प्रबन्धचिन्तामणि, (३) प्रबन्धकोष और (४) विविधतीर्थकल्प ये ४ अन्य मुख्य हैं । ये चारों ग्रन्थ परस्पर बहुत कुछ समान विषयक हैं और एक दूसरेकी पूर्ति करने वाले हैं। जैन धर्मके ऐतिहासिक प्रभावको प्रकट करनेवाली, प्राचीनकालीन प्रायः सभी प्रसिद्ध प्रसिद्ध व्यक्तियोंका थोडाबहुत परिचय इन ४ चारों ग्रन्थोंके संकलित अवलोकन और अनुसन्धान द्वारा हो सकता है । इस लिये हमने इन चारों ग्रन्थोंको एक साथ, एक ही रूपमें, एक ही आकारमें, और एक ही पद्धतिसे सम्पादित और विवेचित कर, इस ग्रन्थमाला द्वारा प्रकाशित करनेका आयोजन किया है। इनमेंसे प्रबन्धचिन्तामणिका, मूलग्रन्थात्मक पहला भाग, गत वर्षमें प्रकट हो चुका है और उसका सम्पूरक 'पुरातनप्रबन्धसंग्रह' नामका दूसरा भाग इस ग्रन्थके साथ ही प्रकट हो रहा है। प्रवन्धकोषका मूलग्रन्थात्मक प इसका सहगामी है। प्रभावकचरित्र अभी प्रेसमें है सो भी थोडे ही समयमें, अपने इन समवयस्कोंके साथ, विद्वानोंके करकमलोंमें इतस्ततः सञ्चरमाण दिखाई देगा । इन चारों ग्रन्थोंका, इस प्रकार शुद्धिसंस्कारपूर्वक मूलस्वरूपका अवतार-कार्य पूरा होने पर, फिर इनका वर्तमान राष्ट्रभाषा (हिन्दी) में द्वितीय अवतार होगा, जो ऐतिहासिक अन्वेषणवाले विवेचनादिसे अलंकृत और स्थानविशेषोंके चित्रादिसे विभूषित होगा।
वैशाखी पूर्णिमाः संवत् १९९.। अनेकान्तविहार, भारतीनिवास ।
जिन विजय अहमदाबाद