________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates महावीर-वन्दना जो मोह माया मान मत्सर, मदन मर्दन वीर हैं। जो विपुल विघ्नों बीच में भी, ध्यान धारण धीर हैं।। जो तरण-तारण, भव-निवारण, भव-जलधि के तीर हैं। वे वंदनीय जिनेश, तीर्थंकर स्वयं महावीर हैं / / जो राग-द्वेष विकार वर्जित, लीन आतम ध्यान में। जिनके विराट् विशाल निर्मल , अचल केवलज्ञान में।। युगपद् विशद सकलार्थ झलकें, ध्वनित हों व्याख्यान में। वे वर्द्धमान महान जिन, विचरें हमारे ध्यान में।। जिनका परम पावन चरित, जलनिधि समान अपार हैं। जिनके गुणों के कथन में, गणधर न पावें पार है।। बस वीतराग-विज्ञान ही, जिनके कथन का सार है। उन सर्वदर्शी सन्मती को, वंदना शत बार है।। जिनके विमल उपदेश में, सबके उदय की बात है। समभाव समताभाव जिनका, जगत में विख्यात है।। जिसने बताया जगत को, प्रत्येक कण स्वाधीन है। कर्त्ता न धर्त्ता कोई हैं, अणु-अणु स्वयं में लीन है।। आतम बने परमातमा, हो शान्ति सारे देश में। है देशना सर्वोदयी, महावीर के सन्देश में / / - डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल 33 Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com