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इस प्रकार अभिप्राय को प्रेरित करने वाला विषयज्ञान भाव्यमानता का लक्षण माना गया है । (२५)
विषयज्ञान होने पर भी अगर अभिप्राय नहीं बना है तो वह आत्मजनित विषयज्ञान आत्मा को बाधाकारी नहीं है । (२६)
अभिप्राय से निरन्तर असंख्य विचार उत्पन्न होते हैं । जैसे कि 'जिससे मैं प्रसन्न हूँ उसे मैं हमेंशा प्राप्त करूँ ।' (२७)
'नए-नए विषयों की प्राप्ति कैसे हो ? प्राप्त का संरक्षण कैसे हो ? रक्षित का निरन्तर उपभोग कैसे हो ।' (२८)
प्राप्ति, रक्षा और उपभोग की चिन्ताओं से व्याकुल जीव जो भी कल्पना करता है, उसको अर्थघटन कहते हैं । (२९)
'जो मुझे अच्छा नहीं लगता, उनका मैं निवारण करूँगा । मुझे ऐसा करना चाहिए कि जिससे ये प्रतिकूलता फिर न आएँ ।' (३०)
तृतीय स्
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