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दो व्यक्ति को समान अनुभव होने पर भी दोनों का अनुभव स्वतन्त्र होता है। अतः अनुभव की स्वतन्त्रता नष्ट नहीं होती । जिस प्रकार सबकी आँखे आदि समान होने पर भी अपनी पृथक् पृथक् होती हैं । (१९)
वास्तव में विषयों के ग्रहण से आत्मा को वैसी हानि नहीं होती है, जैसी हानि मोहनीय के कारण होने वाले अभिप्राय के निर्माण से होती है । (२०)
फिर भी मोहनीय के विक्षोभ का कारण विषयों का ग्रहण ही है, अतः विषयग्रहण से भी आत्मा की हानि मानी जाती है । (२१)
इच्छा से प्रेरित होकर ही जीव विषयों में प्रवृत्त होता है, अतः विषयों के ग्रहण को सदा दोष ही माना गया है । (२२)
केवलज्ञानीओ के शरीर के साथ भी पाँचों इन्द्रियों के मनोहर विषयों का संयोग होता है, किन्तु उनमें अभिप्राय का प्रवर्तन नहीं होता । (२३)
केवलज्ञानीओ को ये विषय अच्छे या बूरे नहीं लगते । वे विषयों की इन्द्रियग्राह्यता को ज्ञान द्वारा जानते है । (२४)
तृतीय प्रस्ताव