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इस (शंका) का संक्षेप में यह समाधान सावधान होकर जान लो मोहनीय का उदय दुःख है, उसका अभाव सुख है। (७)
मोहनीय के मिश्रण से जो सुख उत्पन्न होता है, वह बच्चों के मिट्टी खाने के आनन्द की तरह नगण्य है । (८)
कर्मोदय से अनुविद्ध होने के कारण आत्मा विकृत ज्ञान का आश्रय लेता है। उस विकृत ज्ञानपद्धति के कारण सुख-दुःख उत्पन्न होते है । (९)
जैसे रोग शरीर का स्वभाव नहीं है फिर भी शरीर में उत्पन्न होता है वैसे कर्म के अंश स्वरूप दुःख भी आत्मा का स्वभाव नहीं है फिर भी आत्मा में उत्पन्न होता है । (१०)
सुख के अनुभव में चेतना का समुल्लास तथा दुःख के अनुभव में चेतना का संकोच होता है। (११)
कर्मों के नष्ट होने पर चेतना स्थिरता को प्राप्त कर लेती है, उसी स्थिरता को आत्मा का मूलभूत शुद्ध सुख कहा जाता है। (१२)
पाँचवा प्रस्ताव
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