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काव्यानुशासनम्
चतुर्थोऽध्यायः (८) छत्रवन्ध :
(९) पद्मबन्ध :
हा मान
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एनश्छिनत्तु न इन सुनयेन पुनः पुनः । ध्यानज्ञान धनस्थान स्वनमिर्ध्वननः स्वनः ||
गोमूत्रिका :
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श्रिये श्री स्व्रतो देवः श्रितो मुनिभिरस्तु वः । नरामरनमन्मौलि लिह्यमानक्रमो जिनः ॥