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________________ boy.pm5 2nd proof हैं या उठते हैं तो पृथ्वी के जीवों को परेशान होना पड़ता है । जमीन में खड्डे खोदते हैं, रेत के घर बनाते हैं तो उससे भी पृथ्वी के जीव बहुत परेशान होते हैं। हम दूसरे जीवों को परेशान करते हैं तो बदले में हमको परेशान होना पड़ता ७. पृथ्वीकाय हम रोड़ पर चलते हैं, मेदान में घूमते हैं, नदी या सागर के किनारे पर जाते हैं, छोटे-बड़े पहाड़ चढ़ते हैं, जंगल में और बगीचे में खेलने जाते हैं, तब हमारे पैरों के नीचे जो जमीन आती है वह पृथ्वी है। धरती, भूमि, जमीन, ये सब पृथ्वी के पर्यायवाची नाम है। पृथ्वी में जीव होता है । पृथ्वी को हमारी तरह हाथ पैर नहीं होते । पृथ्वी पर गरम पानी गिरता है तो उसे वेदना होती है। परन्तु वो गरम पानी से बचने के लिए भाग नहीं सकती । पृथ्वी को अगर कोई कुल्हाड़ी से मारता है तो उसे वेदना होती है। उसे मार खाने से असह्य वेदना होती है, परन्तु वह अपने आपको बचाने के लिए भाग नहीं सकती । पृथ्वी २२,००० वर्ष तक जीने की क्षमता रखती है। सब पृथ्वी इतना लम्बा नही जी सकती । पृथ्वी का ज्यादा से ज्यादा आयुष्य २२,००० सालका है । पृथ्वी स्पर्श के माध्यम से अनुभव पा सकती है। ऐसी सजीवन पृथ्वी को पीड़ा नहीं दे कर हम सच्चे जैन बन सकते हैं। पृथ्वी की जीने की शक्ति और अनुभव पाने की शक्ति को हमारे हाथों से नुकशान न हो उसका ख्याल रखना चाहिये । हमको कोई परेशान करता है तो हमे अच्छा नहीं लगता उसी तरह पृथ्वी को भी कोई परेशान करे तो उसे अच्छा नहीं लगता । पृथ्वी लाचार है वो बिचारी बोल नहीं सकती । हमें समझकर उसे तकलीफ न हो वैसे रहना चाहिये। खुल्ले मेदान की जमीन में पृथ्वीकाय जीवन्त होते हैं । मेदान में भागदौड करने से पृथ्वी के जीवों को तकलीफ होती है । बगीचा, जंगल और खेत की जमीन में पृथ्वीकाय जीवन्त होते हैं। हमारे वहाँ चलने से पृथ्वी के जीवों को परेशान होना पड़ता है । नदी के किनारे, सागर के किनारे, तलाब के किनारे मिट्टी या रेत होती है उसमें पृथ्वी के जीव होने की सम्भावना है। हम वहाँ चलते हैं या बैठते हम दूसरे जीवों को तकलीफ देते हैं तो बदले में हमको भी तकलीफ भुगतनी पड़ती है। मैं जैन हूँ। मैं पृथ्वीकाय को जीवों के तकलीफ न पहुँचे उसके लिए सदा जागृत रहूँगा। इतना याद रखो :+ घर की जमीन, घर की दीवारों में जीव नहीं होते । + डामर से बनी हुई पक्की सड़क पर जीव नहीं होते । जिस रास्ते से हजारों लोगों का जाना-आना होता हो उस रस्ते की जमीन में जीव नहीं होते । + मन्दिर, उपाश्रय और धर्मशाला के मकान जमीन में जीव नहीं होते। + हमारे घर की छत की जमीन में जीव नहीं होते । जिस मेदान में रोज हजारों लोगों का आना-जाना हो तो उस मेदान की जमीन में जीव नहीं होते । + + + बालक के जीवविचार . ९ १० • बालक के जीवविचार
SR No.009505
Book TitleBalak ke Jivvichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamrativijay
PublisherPravachan Prakashan Puna
Publication Year2008
Total Pages48
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size1 MB
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