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१. जीव विचार
जीव यानी आत्मा । जीव यानी चेतन । जीवों का विचार यानी मेरा और आपका विचार | विचार करते हैं तो पहचान होती है। आप जीव हैं। आप जीवों का विचार करते हो तो आपको अपनी पहचान होती है। मैं जीव हूँ, मैं जीवों का विचार करूं तो मुझे मेरी पहचान होगी। आप जीवों का विचार करते हो तो आपको मेरी पहचान भी होती है क्योंकि मैं जीव हूँ। मैं जीवों का विचार करूँ तो मुझे आपकी भी पहचान होती है क्योंकि आप जीव हैं। + जीवों की पहचान होती है तो, जीवों का भूतकाल जान सकते हैं। + मेरी पहचान होती है तो, में मेरे भूतकाल को जान सकता हूँ। + आपकी पहचान होती है तो आपका भूतकाल जान सकते हैं। + भूतकाल जान लेते हैं तो वर्तमान समय में सावधानी आती है। + भूतकाल को जान लेते हैं तो भविष्य के लिए जागृत बनते हैं । + जीव हो उसका जनम होता है । जीव हो उसे जिन्दगी मिलती है। + जीव हो उसकी मृत्यु होती है। जीव हो उसे परलोक में जाना पड़ता है ।
जीवविचार ग्रन्थ जीवकी पूरेपूरी पहचान देता है।
जीवविचार ग्रन्थ में जीवों की अलग-अलग पहचान बताई है । इस शास्त्र की रचना प्राकृत भाषा में हुई है।
इस शास्त्र की रचना श्री शान्तिसूरिजी म.सा. ने की है।
हम जैन है। जैन धर्म जीवदया को मानता हैं। जीवदया और अहिंसा दोनों एक ही है । जीवदया का पालन करना हो, अहिंसा का आचरण करना हो तो जीवविचार का अभ्यास करना ही चाहिए ।
मैं जैन हूँ, मुझे जीवदया का पालन करना है। मैं जैन हूँ, मुझे अहिंसा का आचरण करना है। मैं जीवविचार का अध्ययन करुंगा ।
२. चार गति
जीव परलोक से आता है। जितने साल की जिन्दगी होती है उतने साल तक जीव शरीर के साथ, शरीर में रहता है। जिन्दगी समाप्त होती है उसके बाद जीव परलोक में चला जाता है।
परलोक यानी हमारे जन्म से पहले की दुनिया। परलोक यानी हमारी जिन्दगी समाप्त हो जाने के बाद की दुनिया । हम परलोक से आए हैं और हम परलोक में जायेंगे।
परलोक में हम कहाँ थे उसे हम नहीं जानते । परलोक में हम कहाँ जायेंगे उसका भी हमें पता नहीं है। हमको मालूम नहीं है इसलिए परलोक का डर, भय लगता है। जीवविचार का अध्ययन करेंगे तो परलोक की विशाल दुनिया की पहचान होगी।
हमारे भगवान ने परलोक की विशाल दुनिया के चार विभाग बताए हैं। इन चार विभाग को चार गति कहते हैं। चार गति के नाम तो हमको मालूम ही है।
१. मनुष्यगति, २. देवगति, ३. तिथंचगति, ४. नरकगति + हम पिछले जन्म में इन चार गति में से किसी एक गति में थे। पिछले
जन्म को परलोक कहते हैं। + हम अगले जन्म में इन चार गति में से किसी एक गति में जायेंगे। अगले
जन्म को परलोक कहते हैं। + हम इस जन्म में चारगति में से किसी एक गति में हैं हमारे इस जन्म को
इहलोक कहते हैं। + इहलोक में हम मनुष्यगति में है। हम इहलोक में अच्छे बनेंगे तो परलोक
में अच्छी गति मिलती है। अच्छी गति दो हैं । १. मनुष्यगति २. देवगति + हम इहलोक में खराब बनेंगे तो परलोक में खराब गति मिलती है । खराब
गति दो हैं । १. तिर्यंचगति २. नरकगति
मुझे अच्छी गति में जाना है। मुझे खराब गति में नहीं जाना । अच्छी गति में अच्छे कार्य करने की शक्ति मिलती है। खराब गति में अच्छे कार्य करने की शक्ति नहीं मिलती। + जीवविचार कहता है कि जो इहलोक में अच्छा रहता है वह परलोक में
अच्छा बनता है।
बालक के जीवविचार . १
२. बालक के जीवविचार