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१५ कर्मभूमि, ३० अकर्मभूमि और ५६ अन्तद्वीप के १०१ मनुष्य होते है। १०१ भेद है, ये १०१ भेदवाले मनुष्य गर्भज भी होते हैं और संमूर्छिम भी होते है, गर्भज मनुष्य पर्याप्ता भी होते हैं और अपर्याप्ता भी होते हैं, संमूर्छिम मनुष्य पर्याप्त नहीं होते, वे अपर्याप्त ही होते है ।
१०१ गर्भज मनुष्य पर्याप्ता
१०१ गर्भज मनुष्य अपर्याप्ता १०१ संमूर्छिम मनुष्य अपर्याप्ता ३०३ मनुष्य के भेद हुए ।
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बालक के जीवविचार ६१
३२. महाविदेह २० तीर्थंकर
मेरुपर्वत के आस-पास महाविदेह क्षेत्र होता है। यह हमने सीख लिया । इस महाविदेह क्षेत्र के चार विभाग होते हैं। एक मेरुपर्वत के साथ में चार महाविदेह होते हैं। जम्बूद्वीप में एक मेरु है तो जम्बूद्वीप में महाविदेह चार है, धातकीखण्ड में दो मेरु है तो महाविदेह आठ है। पुष्करार्ध में दो मेरु है तो महाविदेह आठ है । जम्बूद्वीप में चार महाविदेह, धातकीखण्ड में आठ महाविदेह, पुष्करार्ध में आठ महाविदेह इस प्रकार कुल २० महाविदेह क्षेत्र है, इस बात को चित्र द्वारा समझ सकेंगे ।
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६२ • बालक के जीवविचार
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पुष्करार्ध
धातकीखण्ड
जंबुद्वीप
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ढाइद्वीप : २० महाविदेह
ये २० महाविदेह क्षेत्र इस मनुष्यलोक की सर्वश्रेष्ठ जगह है। इस २० महाविदेह क्षेत्र में सदाकाल तीर्थंकरो का विचरण होता है। इन २० महाविदेह क्षेत्र में सदाकाल मोक्षगमन चालु रहता है । २० महाविदेह क्षेत्र यह सर्वोत्तम तीर्थ भूमि है ।
जम्बूद्वीप में चार महाविदेह है। जम्बूद्वीप में चार तीर्थंकर है । धातकीखण्ड में आठ महाविदेह है । धातकीखण्ड में आठ तीर्थंकर है। पुष्करार्ध में आठ महाविदेह है । पुष्करार्ध में आठ तीर्थंकर है ।