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३१. मनुष्य के १०१ भेद
जम्बूद्वीप का विस्तार १ लाख योजन का है [१ योजन के अन्दाज ८ माईल होते है]
लवणसमुद्र का विस्तार २ लाख योजन का है। धातकीखण्ड द्वीप का विस्तार ४ लाख योजन का है। कालोदधि समुद्र का विस्तार ८ लाख योजन का है। पुष्करवर द्वीप का प्रथम भाग का विस्तार ८ लाख योजन का है। मनुष्यलोक में कर्मभूमि और अकर्मभूमि ऐसे दो विभाग होते हैं । कर्मभूमि तीन है। (१) भरतक्षेत्र (२) ऐरावत क्षेत्र (३) महाविदेह क्षेत्र १. जम्बूद्वीप में
१ भरत क्षेत्र है। १ ऐरावत क्षेत्र है।
१ महाविदेह क्षेत्र है। २. धातकीखण्ड में
२ भरत क्षेत्र है। २ ऐरावत क्षेत्र है।
२ महाविदेह क्षेत्र है। ३. पुष्करवरार्ध द्वीप में २ भरत क्षेत्र है।
२ ऐरावत क्षेत्र है।
२ महाविदेह क्षेत्र है। जम्बूद्वीप में ३ कर्मभूमि है। धातकीखण्ड में ६ कर्मभूमि है। पुष्करवरार्ध द्वीप में ६ कर्मभूमि है । कुल मिलाकर १५ कर्मभूमि होती है । अकर्मभूमि छह है। (१) हिमवन्त (२) हिरण्यवन्त (३) हरिवर्ष (४) रम्यक्षेत्र (५) देवकुरु (६) उत्तरकुरु
ये छह अकर्मभूमि जम्बूद्वीप में एक-एक है। जम्बूद्वीप में कुल मिलाकर ६ अकर्मभूमि है । ये छह अकर्मभूमि धातकीखण्ड में दो-दो है । कुल मिलाकर १२ । पुष्करवरार्ध में ये छह अकर्मभूमि दो-दो है । कुल मिलाकर १२ । सब मिलाकर ३० अकर्मभूमि है । जम्बूद्वीप में
शिखरी पर्वत से पूर्व और पश्चिम तरफ समुद्र में पर्वत की २-२ दाढ़ाएँ निकलती है।
लघुहिमवन्त से भी पूर्व और पश्चिम तरफ समुद्र में पर्वत की २-२ दाढ़ाए निकलती है।
दाढ़ा यानी गहरे-गहरे पानी में पर्वत । इसका आकार हाथी के दाँत जैसा होता है।
इस प्रकार कुल ८ दाढ़ाएँ निकलती है। हर दाढ़ा में सात अन्तर्वीप होते हैं । ८४७ = ५६ अन्तर्वीप होते हैं ।
इन द्वीपों में असंख्यात वर्ष के आयुष्यवाले युगलिक रहते हैं। समुद्र के अन्दर होने से ये द्वीप अन्तर्वीप कहलाते हैं ।
१५. कर्मभूमि : जम्बूद्वीप के एकदम बीचो-बीच मेरुपर्वत है । मेरुपर्वत की पूर्वदिशा में महाविदेह क्षेत्र है। मेरुपर्वत की पश्चिमदिशा में भी महाविदेह क्षेत्र है । मेरुपर्वत की दक्षिणदिशा में चार क्षेत्र है। मेरुपर्वत को छूकर उत्तरकुरु क्षेत्र है । उससे कुछ दूर रम्यक् क्षेत्र है । उससे कुछ दूर हिरण्यवन्त क्षेत्र है। उससे कुछ दूर ऐवत क्षेत्र है। मेरुपर्वत की उत्तरदिशा में, चार क्षेत्र है। मेरुपर्वत को छूकर देवकुरु क्षेत्र है ।
बालक के जीवविचार • ४९
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