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________________ boy.pm5 2nd proof बाल राजाओं के लिए प्रकाशकीय पू. मुनिराजश्री प्रशमरतिविजयजी म. द्वारा लिखित बागडोना विया२ यह किताब गुजराती वर्ग में अत्यन्त आदरपात्र बनी है। आज इसका हिन्दी अनुवाद सुलभ हो रहा है। हमे असीम हर्ष है। हिन्दी अनुवाद का श्रमसाध्य कार्य साध्य कार्य पू. साध्वीजीश्री सूर्योदयाश्रीजी के शिष्या पू. साध्वीजी श्री कैलासश्रीजी के शिष्या पू. साध्वी श्री विपुलदर्शिताश्रीजी ने किया है । आपके ज्ञानरसकी अनुमोदना । छोटे बच्चे राजा जैसे होते हैं । खुश हो जाए तो निहाल कर देते हैं । रूठ जाए तो बेहाल कर देते हैं । ऐसे बाल राजाओं को रोज सुबह स्कूल जाते हुए देखता हूँ और शाम को पाठशाला आते हए देखता हूँ । सोचता हूँ, इन दोनों में कितना फर्क है ? स्कूल में फी भरकर जाते हैं, और पाठशाला में फी नहीं भरते बल्कि जो प्रभावना मिलती है उसको लेकर आते हैं । स्कूल में बहुत विषयों की बहुत किताबे । पाठशाला में एक ही विषय का एक ही पुस्तक । स्कूल में हर वर्ष नई-नई किताबें पढ़नी पड़ती है। पाठशाला में वर्षों तक एक ही किताब । पाठशाला में नहीं आनेवाले बालराजा तो क्या मालूम क्या करते हैं? कुछ पता ही नहीं । ये बालराजा कल बड़े होंगे, पाश्चात्य शिक्षणशैली के संस्कार और संसारप्रधान दृष्टि ही होगी उनके पास । थोड़ी गाथाए के जोर पर कितने टिकेंगे बच्चे ? ये बालराजा अगर सोच ले तो आठ वर्ष की छोटी आयु में साधु बन सकते हैं। इन बालराजाओं को अगर अच्छे संस्कार मिल जाए तो बारव्रतधारी श्रावक बन सकते हैं । इन बालराजाओं को अगर जैन धर्म के सुन्दर संस्कार मिल जाए तो रोज चौदह नियमों का पालन कर सकते हैं। मा-बाप तो आत्मलक्षी नहीं रहे । घर के अन्दर धर्म की महिमा कम हो रही है । वातावरण बहुत ही विचित्र है। क्या होगा इन बालराजाओं का ? आज की नई पीढ़ी को क्रमसर पदार्थशिक्षण मिले उसके लिए बालक के जीवविचार यह पुस्तक लिखा गया है । हमारे बालराजाओं के लिए ये जीवविचार उपयोगी बनेंगे ऐसा विश्वास है। मा-बाप अपने सन्तान को पढ़ा सकें वैसी शैली से यह किताब लिखी गई है । तपागच्छाधिराज पू. आ. म. श्रीमद् विजयरामचन्द्र सूरीश्वरजी म. के तेजस्वी शिष्यरत्न प्रवचनकार बन्धुबेलडी पू. मुनिराजश्री वैराग्यरतिविजयजी म., प. मनिराजश्री प्रशमरतिविजयजी म. की साहित्ययात्रा का हिन्दी प्रवेश हमारे लिये गौरव की घटना है। - प्रवचन प्रकाशन प्रशमरतिविजय कंकुपगला महासुदि १० । वि० सं० २०६२
SR No.009505
Book TitleBalak ke Jivvichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrashamrativijay
PublisherPravachan Prakashan Puna
Publication Year2008
Total Pages48
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size1 MB
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