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१३. एकेन्द्रिय की पहचान
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पृथ्वीकाय में क्या-क्या आता है ?
स्फटिक, मणि और रत्न [रत्न के चौद प्रकार हैं] प्रवाल, हिंगुळ, हरताल, मैणसिल, पारा सप्तधातु [सोना, चाँदी, ताम्बा, लोहा, कलाइ, सीसा, जसत] खड़ी, हरमची, अरणेटो, पलेवक, अबरख, फटकडी, तूरी, खार, मिट्टी और छोटे-बड़े पत्थर, सुरमा और नमक ।
अप्काय में क्या-क्या आता है ?
जमीन से निकलता पानी, पहाड से बहता पानी, बारीश रूप में आकाश से बरसता पानी, ओस, बरफ, करा, घास पर प्रात: काल में चमकते जलबिन्दु, धुम्मस, बादल, दरिया, खाड़ी और भाप ।
तेउकाय में क्या-क्या आता है ?
कण्डे, चिनगारियाँ, अंगारे, ज्वाला, भठ्ठा, तिणखा, बीजली, गन्धक या दारुगोले से होनेवाले विस्फोट, रांधण सगड़ी की आग ।
इलेक्ट्रीकसिटी से चलने वाले सभी साधन,
सेलबेटरी से चलने वाले सभी उपकरण, डीझल-पेट्रोल से चलने वाले सभी वाहनो की गति शक्ति के मूल में तेउकाय हैं ।
वायुकाय में क्या-क्या आता है ?
आँधी, हवा, पवन, चक्रवात, श्वास, सिलीन्डर का गेस, म्युझिक की ध्वनि, मूँह की फूँक, ताली और सिसोटी ।
साधारण वनस्पति में क्या-क्या आता है ?
भूमिकन्द, फणगा, अंकुरे, नये कोमल पत्ते, पंचवर्णी फूग, शेवाल, बिल्ली के टोप, हरी आदू, हरी हल्दी, हरा कचूरा, गाजर, टांक की भाजी, पालख की भाजी, कोमल फल, गुप्त नसोवालें पत्ते, छेदन करने के बावजुद भी वापिस उपजे ऐसे थोरा, घी कुंवार, गुगल, गलोय ।
प्रत्येक वनस्पतिकाय में क्या-क्या आता है ?
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फळ, फूल, थड, मूल, पत्ते, छाल और बीज खेत में, वाडी में, बगीचो में जंगल में, कुंडे में, और जमीन में उगने वाली तमाम लीलोतरी। एकेन्द्रिय जीवों की तो यह उपर उपरकी पहचान है, अभी तो बहुत समझना बाकी है ।
बालक के जीवविचार २१
१४. बेइन्द्रिय
अनुभव करने की शक्ति में जिनके पास एकेन्द्रिय से एक ज्यादा इन्द्रिय होती है वह बेइन्द्रिय जीव कहलाते हैं ।
इन्द्रिय के पास अनुभव पाने की दो शक्ति हैं। स्पर्श का अनुभव पाने की शक्ति, चमडी स्पर्शनेन्द्रिय । स्वाद का अनुभव पाने की शक्ति, जीभ रसनेन्द्रिय । बेइन्द्रिय त्रस है वे अपनी मरजी से हलनचलन कर सकते हैं । तकलीफ जैसा लगे तो वहाँ से दूर भाग सकते हैं। अनुकूल लगे उस जगह पहुँच सकते हैं ।
बेइन्द्रिय जीवों का जनम पानी में भी होता है, बेइन्द्रिय जीव जमीन पें भी जन्म लेते हैं ।
बेइन्द्रिय जीव वासी भोजन में भी जन्म लेते हैं ।
बेइन्द्रिय जीव हमारे शरीर में भी जन्म लेते हैं। बेइन्द्रिय जीव बहुत छोटे होते हैं । उनको अपने जीवन और अपने शरीर के साथ कोई खेल करे तो अच्छा नहीं लगता । उनको अपने जीवन और अपने शरीर को नुकशान होने से वेदना होती है। हम बेइन्द्रिय जीवों को पहचान कर उनको वेदना न हो इस तरह रहने का अगर निश्चित कर ले तो हमारा धर्म सफल हो जाता है ।
अक्ष, शंख, शंखला, छीप, कोडा, कोडी, भूनाग अलसिया, काष्ठ की कीड़े, कृमि [पेट के कीडे ], पानी के पोरे, मामणमुण्डा, वासी रोटी के कीडे, मातृवाहिका मंडोल ये सब बेइन्द्रिय जीव है। ये और ऐसे अन्य सभी बेइन्द्रिय जीवों की पहचान कर लेनी चाहिये। जितने जीवों की पहचान मिले उन सब को जीवदया की दृष्टि से देखना चाहिये । उनको तकलीफ हो, उनके जीव को, उनकी अनुभव शक्ति को या उनके शरीर को हमारे द्वारा नुकशानी हो तो विराधना का पाप लगता है ।
मैं जैन हूँ, बेइन्द्रिय जीवों की विराधना से मैं बचता रहूँगा ।
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२२ • बालक के जीवविचार