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________________ परिशिष्ट-१ बन्धशतकप्रकरणम् परिशिष्ट-१ ॥श्री लघुशतकभाष्यम् ॥ णमिऊण जिणं वुच्छामि बंधसयगे चउण्ह बंधाणं । दाराणि तहा संखामित्तनिविट्ठा उ पयडीओ ॥१॥ पढमपए पगइए (पगइबंधे) साइआई भुयग्गारमाइ सामित्तं । साईआई सुहअसुहपच्चयं सामिणो बीए ॥२॥ तह साआइ पच्चय सुहासुहं सामि घाइय अघाई । भन्नति ठाण पच्चय विवागभेया य रसबंधे ॥३॥ कम्मपएसग्गहणविहि भाग तह साइआइ सामित्तं । भन्नइ पएसबंधे ठिइबंधऽट्ठारस इमाओ ॥४॥ संजलण नाण दंसणचक्क विग्याणि पन्नरस एया । नरतिरिनरयाउविगलसुहुमतिगविउव्विछक्काणि ॥५॥ छेवटुं उज्जोयं तिरिओरालियदुगाणि "छप्पयडी । "तिन्नि पयडी उ आयवथावरएगिदिजाईओ ॥६॥ छप्पयडी उ विउव्वियछक्कं इत्तोऽणुभागबंधम्मि । अगुरुलहु कम्मतेयगसुवन्न चउ निमिण अट्ठ इमा ॥७॥ मिच्छ कसाय दुगुंछा भय दंसण नाण विग्ध उवघाया । असुभा चउ वन्नाई 'तेयालीसा इमा होइ ॥८॥ १. स्थितिबन्धे, २. 'अट्ठारसपयडीणं'ति पञ्चपञ्चाशत्तमगाथायामुक्ता अष्टादश प्रकृतयः, ३-४-५ 'पन्नरसण्ह'ति एकषष्ठितमगाथोक्ताः प्रकृतयः, ६. 'छहमसन्नी'त्ति चतुःषष्ठितमगाथोक्ताः ७-८. 'अट्ठण्ह'त्ति सप्तषष्टितमगाथोक्ताः, ३४०
SR No.009504
Book TitleBandhashataka Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVairagyarativijay, Prashamrativijay
PublisherPravachan Prakashan Puna
Publication Year2005
Total Pages376
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size1 MB
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