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________________ बन्धशतक प्रकरणम् किंचि सरूवं एवं नाणा जीवाण किर जया हुंति । उदयम्मि सम्पराया नाणावरणाइकम्माणं ॥ १००६ ॥ ठी निव्वत्तणगाणि तया संखयाण लोगाण । जे आगासपएसा असंखया तप्पमाणाई ॥ १००७॥ अंतोमुहुत्तमेतज्झवसायट्ठाणगाणि जणयंति । तो समयाहियजहन्नट्ठिइए जणगाणि उकसाया ॥१००८ ॥ तेहिं तो ताणि विसेसहियाणि तओ उ दुसमयहियाए । ठीईए जणगाणि उ विसेसअहियाणि जावंति ॥१००९॥ एवं तिसमयपभिई अहियठिईए विसेसअहियाणि । भणियव्वाणि य एवं सव्वुक्कोसा ठिई जाव ॥१०१० ॥ ते वि असंखलोगागासपएसप्यमाणया कमसो । ठिड़बंधज्झवसायट्ठाणाणि विसेसवुड्ढाणि ॥१०११॥ हुतिय ते विय विज्जंता किर वि समचउरसं खेत्तं । दरिसंती तहि पढमयपंतीइ असंखयाणं तु ॥ १०१२ ॥ चत्तारि तओ बीयाइ पंच तइयाइ छच्च एगाई । जा उक्कोसा उ ठिई अट्ठहि बिंदूहि निप्पन्ना ॥ १०१३॥ एवं कसायजणियज्झवसायट्ठाणगेहि जणियत्ता । कम्मट्ठिईकसायकारणिया सिद्धा वयंति त्ति ॥ १०१४ ॥ सिंपि कसायाणं जं दलिय उदयपत्तयं अत्थि । तं अणुभागट्ठाणं उदेइ तेणं जियस्सेव ॥ १०१५॥ जोऽज्झवसाओ जणयइ तस्स वसेणं तु बज्झमाणेण । कम्माणं अणुभागो निप्फज्जइ तहि परूवणया ॥१०१६॥ अणुभागाणं जा इगपरमाणू पगड़भागपभिईया । फडुगपज्जवसाणा सा सव्वावित्तिओ नेया ॥ १०१७॥ गा.-१०० ३२०
SR No.009504
Book TitleBandhashataka Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVairagyarativijay, Prashamrativijay
PublisherPravachan Prakashan Puna
Publication Year2005
Total Pages376
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size1 MB
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