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वस्तुएँ सत्य नहीं हैं चूंकि वह अनुभवजन्य नहीं है। अतः सभी पदार्थ गुणों की समष्टि मात्र है। इनका कहना है कि सभी गुण अनुभव पर निर्भर हैं। इसलिए सभी पदार्थ अनुभवाश्रित हैं। इस तथ्य को बर्कले ने अपनी प्रसिद्ध उक्ति Esse est percipii द्वारा स्पष्ट किया है। इसका अर्थ ही होता है कि वस्तुओं का अस्तित्व अनुभवकर्ता पर निर्भर है। बर्कले ने सिर्फ आत्मा और ईश्वर द्रव्य को स्वीकार किया है। ईश्वर के कारण ही उन्होंने बाद में चलकर एसे इस्ट परसीपी की जगह कॉनसीपी शब्द का प्रयोग किया है।
ह्यूम-बर्कले ने लॉक के दर्शन को विकसित किया है किन्तु ह्यूम ने लॉक और बर्कले दोनों को संगत बनाने की कोशिश की है। इनसे आगे बढ़ना संभव नहीं है। इसीलिए रसेल ने लिखा है कि "David Hume (1711-1776) is one of the most important among philosophers, because he developed to its logical conclusion, the empirical philosophy of Locke and Berkeley, and by making it self-consistent made it incredible. He represents, in a certain sense, a dead end in his direction, it is impossible to go further." अतः लॉक आदि ने जिस अनुभववाद की पुष्टि की है, हयुम ने उसे पराकाष्ठा पर पहुंचा दिया है। इनका कहना है कि जिस प्रकार भौतिक द्रव्यों को अनुभवगम्य नहीं होने के कारण बहिष्कृत किया गया है, उसी तरह आत्मा एवं ईश्वर की सत्ता का भी बहिष्कार किया जा सकता है। फ्रेडरिक मेयर ने ठीक ही लिखा है कि "David Hume came along and boldly declared that we can accept neither the material nor the spiritual substance nor can we prove the existence of god." हयूम की दृष्टि में केवल प्रत्यय ही यथार्थ हैं। प्रत्यय के अतिरिक्त किसी भी सत्ता को स्वीकार नहीं किया जा सकता है। इसीलिए इनके मत को सर्वाहवाद भी कहा जाता है। इनकी मुख्य दार्शनिक रचना 'द हिस्ट्री ऑफ ह्यूमन नेचर एवं अन्य रचनाओं के अध्ययन से यह और स्पष्ट हो जाता है।
इन्होंने अनुभव के दो अंगों को स्वीकार किया है-संवेदन और प्रत्यय। संवेदन भी दो तरह के होते हैं-बाह्य और आन्तरिक। संवेदन की अपेक्षा प्रत्यय कम तीव्र होते हैं। प्रत्यय संवेदनों की प्रतिलिपि हैं। इसीलिए प्रत्यय संवेदनों से निर्बल एवं कम स्पष्ट होते हैं। संवेदन प्रत्यय की तुलना में अधिक स्पष्ट और तीव्र होते हैं।
ह्यूम ने स्वीकार किया है कि सार्वभौम और अनिवार्य ज्ञान प्राप्त नहीं किया जा सकता है। इसलिए हमें संभाव्य ज्ञान पर ही भरोसा करना पड़ेगा। यही कारण है कि इन्हें संदेहवादी कहा जाता है। हयूम का कहना है कि यदि हम अपनी बुद्धि या समझ पर भरोसा रखें तो संदेहवाद अनिवार्य रीति से हमें ग्रहण करना पड़ेगा। इसका मतलब यह नहीं कि हयूम वस्तुतः संदेहवादी हैं। वास्तव में ह्यूम प्रत्यक्षवादी अर्थात् अनुभववादी हैं। गणित विज्ञान के विषय में इन्हें संदेहवादी कहना अनुपयुक्त सिद्ध होगा। इन्होंने स्वीकार किया है कि
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