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ही। अगर व्याप्ति अनुमान पर आधारित हो तो उस अनुमान को किसी अन्य व्याप्ति पर आधारित करना होगा। इस तरह यहां अन्योन्याश्रय दोष हो जाता है। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि अनुमान व्याप्ति पर निर्भर है एवं व्याप्ति अनुमान पर आधारित है। इस दोष से बचने के लिए व्याप्ति को अनुमान द्वारा स्थापित नहीं किया जा सकता है।
3. व्याप्ति की स्थापना हम शब्द के द्वारा भी नहीं कर सकते हैं क्योंकि शाब्दिक प्रमा भी अनुमान के द्वारा ही सिद्ध होती है। दूसरी बात यह है कि यदि अनुमान हमेशा शब्द-प्रमाण पर ही आधारित हो तो फिर कोई भी व्यक्ति अपने आपसे अनुमान नहीं कर सकता। उसे सर्वदा किसी विश्वास योग्य व्यक्ति पर निर्भर करना होगा।
4. कार्य-कारण-नियम और प्रकृति-समरूपता-नियम के आधार पर भी 'व्याप्ति' की स्थापना नहीं हो सकती। कार्य-कारण-नियम के मुताबिक प्रत्येक घटना का कारण होता है। कारण के अभाव में कोई भी घटना नहीं घट सकती है। प्रकृति-समरूपता-नियम के अनुसार समान परिस्थिति में प्रकृति का समान व्यवहार होता है। अगर आज धुएँ के साथ आग पाई जाती है तो भविष्य में भी पायी जाएगी. क्योंकि दोनों कार्य-कारण-सम्बन्ध से जुड़े हुए हैं। अब प्रश्न उठता है कि क्या दोनों नियमों की मदद से व्याप्ति की स्थापना की जा सकती है? चार्वाक का कहना है कि ये दोनों नियम भी सामान्य वाक्य या व्याप्ति-वाक्य ही हैं तो फिर स्वयं इसकी स्थापना किस प्रकार होगी? यहां एक सामान्य वाक्य की स्थापना अन्य सामान्य वाक्यों की सहायता से की जा सकती है। इसीलिए यहां भी पुनरावृत्ति अथवा चक्रक दोष उत्पन्न हो जाता है।
5. भावात्मक और अभावात्मक उदाहरणों के निरीक्षण द्वारा भी व्याप्ति की स्थापना नहीं की जा सकती है। नैयायिकों ने अन्वय-व्यतिरेक-विधि के द्वारा व्याप्ति की स्थापना का प्रयत्न किया है। अन्वय-व्यतिरेक-विधि में भावात्मक एवं निषेधात्मक दोनों तरह के उदाहरणों का निरीक्षण किया जाता है। जैसे-अनेक उदाहरणों में धूम और अग्नि की एक साथ उपस्थिति पाते हैं एवं अनेक उदाहरणों में अग्नि की अनुपस्थिति के साथ धूम की भी अनुपस्थिति पाते हैं। तभी हम व्याप्ति-वाक्य की स्थापना कर पाते हैं कि जहां-जहां धुआं है, वहां-वहां आग है। चार्वाक के अनुसार भावात्मक और अभावात्मक उदाहरणों के निरीक्षण के बावजूद कुछ आवश्यक शर्तों के अनिरीक्षण रह जाने की संभावना बनी रहती है। इसलिए अन्वय-व्यतिरेक विधि के द्वारा भी व्याप्ति की स्थापना संभव नहीं है।
अतः अनुमान व्याप्ति पर आधारित है और व्याप्ति में वास्तविक सत्यता नहीं है। व्याप्ति वाक्य की स्थापना न निरीक्षण, न आगमन, न अन्वय-व्यतिरेक से ही हो सकती है। ज्ञान देना अनुमान का आवश्यक गुण नहीं है। अनुमान ज्ञान नहीं देता, वह तो संभावना पर आधारित है।