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ज्ञान-मीमांसा का निषेधात्मक पक्ष
चार्वाक ने प्रत्यक्ष को एकमात्र प्रमाण बतलाकर अन्यप्रमाणों (अनुमान, उपमान, शब्द, अर्थापत्ति एवं अनुपलब्धि) का खण्डन किया है। यहां अनुमान आदि प्रमाणों के विरुद्ध दिये गये तर्कों को प्रस्तुत करना उचित प्रतीत होता है।
अनुमान ज्ञान-प्राप्ति का साधन नहीं है अनुमान का शाब्दिक अर्थ है - अनु+मान अर्थात् पश्चात् ज्ञान । प्रत्यक्ष के बाद आने वाला ज्ञान ही अनुमानजन्य ज्ञान है। एस.सी. चटर्जी ने भी लिखा है-"Anum 2na literally means such knowledge as follows some other knowledge. Inference is sometimes defined as knwoledge which preceded by perception. It depends on perception also for knowledge or vyipti or the universal relation between the middle and major term of inference.” यानी ज्ञात के आधार पर अज्ञात के विषय में ज्ञान प्राप्त करने की क्रिया को अनुमान कहा जाता है। उदाहरणार्थ- किसी विद्यार्थी को कठिन परिश्रम करते देखकर उसके प्रथम श्रेणी में परीक्षोत्तीर्ण होने की बात सोचना अनुमान है। इसी तरह धुएँ को देखकर आग की बात सोचना अनुमान का उदाहरण है। चार्वाक ने, जैसा कि बतलाया जा चुका है कि अनुमान को यथार्थ ज्ञान की प्राप्ति का साधन नहीं माना है। अनुमान के विरुद्ध उनके निम्नलिखित तर्क उल्लेखनीय हैं- (क) अनुमान का आधार व्याप्ति है, जिसकी स्थापना किसी भी प्रकार से संभव नहीं है । अब प्रश्न उठता है कि व्याप्ति क्या है? दो वस्तुओं के बीच नियत, अनौपाधिक एवं सामान्य सम्बन्ध को व्याप्ति कहते हैं। जैसे धुआं और अग्नि के बीच व्याप्ति सम्बन्ध है । 'व्याप्ति' के आधार पर ही अनुमान किया जाता है। उदाहरणस्वरूप "जहां-जहां धुआं है, वहां-वहां आग है। इस पहाड़ पर धुआं है इसलिए इस पहाड़ पर आग है।" इस उदाहरण में "जहां-जहां धुआं है, वहां-वहां आग है" व्याप्तिवाक्य है । इसी आधार पर पहाड़ पर आग होने का अनुमान किया गया है। इसी प्रकार सभी प्रकार के अनुमान व्याप्ति पर ही आधारित रहते हैं। चार्वाक के अनुसार व्याप्ति वास्तविक नहीं हैं एवं इसकी स्थापना कदापि संभव नहीं है । व्याप्ति के विरुद्ध इनका निम्नलिखित आक्षेप है
1. प्रत्यक्ष के आधार पर 'व्याप्ति' की स्थापना नहीं हो सकती है- प्रत्यक्ष के आधार पर भूत, वर्तमान और भविष्य के सभी विषयों का ज्ञान असंभव है। जहां-जहां धुआं है, वहां-वहां आग है। यह एक व्याप्ति - वाक्य है। सभी धुआंयुक्त जगहों को अग्नियुक्त प्रत्यक्ष के आधार पर निरीक्षण करना संभव नहीं है । इसलिए प्रत्यक्ष के द्वारा व्याप्ति की स्थापना नहीं हो सकती ।
2. अनुमान के आधार पर भी व्याप्ति की स्थापना नहीं हो सकती है। जिस अनुमान के द्वारा हम इसकी (व्याप्ति की) स्थापना करेंगे, उसकी सत्यता भी तो व्याप्ति पर ही निर्भर करती है। अनुमान दो तरह के हैं - निगमन एवं आगमन । व्याप्ति की स्थापना न तो निगमन द्वारा संभव है, न आगमन के द्वारा
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