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है कि “तपस्विभ्योऽधिको योगी ज्ञानिभ्योऽपि मतोऽधिकः। कर्मिभ्यश्चाधिको योगी तस्माद्योगी भवार्जुन।।"
उपर्युक्त अलौकिक-प्रत्यक्षों के अन्दर प्रथम है-सामान्य लक्षणाजन्य प्रत्यक्ष और द्वितीय ज्ञान लक्षणाजन्य-प्रत्यक्ष विशिष्ट प्रत्यक्ष के लिए विशेषण का ज्ञान सामान्य लक्षणा सन्निकर्ष कहा जाता है, और विशेषण प्रत्यक्ष के लिए विशेषण का स्मरण ज्ञानलक्षणा सन्निकर्ष कहलाता है।
पाश्चात्य विचारकों की दृष्टि में भले ही ये योगी काल्पनिक हों, किन्तु भारतीयों एवं विशेषकर नैयायिकों के लिए इनका अस्तित्व असंदिग्ध है। ऐसे योगियों की उपस्थिति भारत में हर युग में रही है। भगवान महावीर, गौतमबुद्ध, महर्षि गौतम, कणाद, वेद व्यास, शंकराचार्य, रामानुजाचार्य, तुलसीदास, कबीरदास, मत्स्येन्द्रनाथ, गोरखनाथ, पतंजलि, अर्वाचीन युग में अरविन्द घोष, स्वामी विवेकानन्द, ओशो रजनीश इसके ज्वलन्त उदाहरण हैं।
सार्थक वाक्य के गुण
सार्थक वाक्य की विवेचना करते हुए सी.डी. शर्मा ने ठीक ही लिखा है"Verbal Testimony-A word is a po.......... which signifies an object and a sentence is a collection of words. But a sentence in order to be intelligible must conform to certain............ These conditions are four-ikitkyi, yogyata, sannidhi and tîtparya."
पदों के समूह को 'वाक्य' कहते हैं। लेकिन सभी पदों के समह को वाक्य नहीं कहा जा सकता है। अत: वाक्य पदों का वह समह है, जिससे कोई अर्थ निकले। किसी भी प्रकार का समूह अर्थपूर्ण वाक्य नहीं समझा जा सकता है। किसी वाक्य के अर्थ को शब्दबोध कहते हैं। शब्द बोध के लिए वाक्य का अर्थ अबाधित भी होना चाहिए। जिस वाक्य का अर्थ बाधित होता है, उससे श्रोता को अर्थबोध नहीं होता है। इसलिए किसी अर्थपूर्ण वाक्य के लिए चार बातें आवश्यक हैं-आकांक्षा, योग्यता, सन्निधि एवं तात्पर्य। अन्नंभट्ट ने भी लिखा है-"आकांक्षा योग्यता सन्निधिश्च वाक्यार्थ ज्ञाने हेतुः" ।32
सी.डी. शर्मा के शब्दों में, "The first is mutual impression expectancy. The words of a sentence are inter related and stand in need of one another in order to express a complete sense. A mere aggrigate of unrelated words will not make a logical sentence."
(क) आकांक्षा-किसी वाक्य के पदों को आपस में एक-दूसरे की अपेक्षा रहती है। इसे ही आकांक्षा कहते हैं। यानी शब्द बोध वहाँ होता है, जहाँ वाक्य के अन्तर्गत पदों में परस्पर अपेक्षारूप आकांक्षा समझी जाती है। वाक्य शब्दों के मेल से बनते हैं। इसलिए जरूरी है कि किसी वाक्य के शब्दों में पारस्परिक आकांक्षा हो। दूसरे शब्दों में इसके उद्देश्य और विधेय में परस्पर अन्वय का होना अनिवार्य है। वाक्य के शब्दों में एक-दूसरे की आकांक्षा या अपेक्षा होनी
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