SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 156
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ यही वह हो जाता है। यही ज्ञान की चरम सीमा है यह इन्द्रियानुभव से नहीं बल्कि अनुभवातीत ज्ञान से संभव हो सकता है। श्रीमद्भगवद्गीता के षष्ठ अध्याय के पांचवें श्लोक की व्याख्या करते हुए शंकराचार्य ने बतलाया है कि संसार - सागर में डूबे पड़े हुए अपने-आपको उस संसार समुद्र से आत्मबल के द्वारा ऊँचा उठा लेना चाहिए अर्थात् इन्द्रियों के अधीन न होकर उससे ऊपर उठने की बात बतलाते हैं। उनका कहना है कि योगारूढ़ अवस्था को प्राप्त कर लेना चाहिए। आमा को नीचे नहीं गिरने देना चाहिए क्योंकि यह आप ही अपना बन्धु है । दूसरा कोई (ऐसा ) बन्धु नहीं है जो संसार से मुक्त करने वाला है तथा अपने आप में कोई शत्रु है । कोई दूसरा शत्रु नहीं है। जो स्वयं शरीर रूपी रथ को अपने वश में कर लेता है अर्थात् जितेन्द्रिय हो गया है, वह स्वयं की अनिष्ट से रक्षा कर सकता है। ऐसी स्थिति में वह अपना गुरु भी स्वयं हो जाता है। यह अन्तर चेतना या अन्तर्बोध से ही संभव हो सकता है। शंकराचार्य की शब्दावली में अपरोक्षानुभूति से परम सिद्धि की प्राप्ति संभव हो सकती है। काण्ट ने भी इन्द्रियों को बुद्धि का दुश्मन होना स्वीकार किया है इसलिए भावना का दमन करने की बात को स्वीकार किया है। इसी भावना को नियंत्रित कर अपरोक्षानुभूति के माध्यम से स्थितप्रज्ञ या सच्चिदानन्द की प्राप्ति संभव है बर्गसां ने भी Elam Vital की प्राप्ति के लिए intuition को ही अन्तिम उपाय बतलाया है। डॉ. राधाकृष्णन्, रवीन्द्रनाथ टैगोर, महर्षि अरविन्द घोष, रानाडे, दत्तात्रेय स्वामी विवेकानन्द कबीरदास तुलसीदास, करपात्रीजी महाराज आदि ने भी अन्तर्बोध को ही वास्तविक बोध बतलाया है और यही पारमार्थिक सत्ता की प्राप्ति का एकमात्र उपाय है। वेद, उपनिषद्, आरण्यक, ब्राह्मण ग्रन्थ, स्मृति ग्रंथ, पुराण, सूत्र ग्रन्थ, महाभारत, रामायण, रामचरित मानस, सुर, तुलसी, मीरां कबीर, सहजोबाई, महादेवी वर्मा, रामधारीसिंह दिनकर आदि कवियों का महाकाव्य एवं गद्य ग्रन्थों में ज्ञान देने वालों का महत्त्वपूर्ण स्थान है गुरु को गोविन्द अर्थात ईश्वर से भी अधिक ऊँचा स्थान दिया गया है। शिष्य को विष का बेलरी कहना और गुरु को मृ की खान कहना भी उपर्युक्त बातों की पुष्टि करता है। गुरु को ब्रह्मा, विष्णु और महेश कहा गया है। इसीलिए तुलसी ने "बद ऊँ गुरु पर पदुम पराणा, सुरुचि सुवास सरस अनुरागा ।।" कहा है। बुद्ध और महावीर ने भी गुरुओं की महत्ता अपने-अपने ढंग से स्वीकार किया है। दोनों गुरु हैं और इसलिए ईश्वर तुल्य ही हैं। 156
SR No.009501
Book TitleGyan Mimansa Ki Samikshatma Vivechna
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages173
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, & Philosophy
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy