________________ कारण कार्य सम्बन्ध होने का संकेत मिलता है। अब यदि उन दोनों घटनाओं के साथ अनुपस्थित होने के अभावात्मक उदाहरण भी मिलते हैं तो अन्वय विधि से प्राप्त पहले संकेत करीब-करीब पुष्टिकृत (conformed) हो जाता है और उन दोनों घटनाओं में कारण-कार्य सम्बन्ध होने की संभावना बढ़ जाती है। यद्यपि कारण-कार्य सम्बन्ध फिर भी सिद्ध नहीं हो जाता है, किन्तु ऐसे सम्बन्ध की संभावना बहत बढ़ जाती है। इस तरह यह विधि अन्वय विधि के निष्कर्ष की जांच कर उसे सबल बना देती है। 3. इस विधि का सबसे बड़ा गुण यह है कि यहां बहुकार्य का भय नहीं रहता है। 4. इस विधि का काम हमारे व्यावहारिक और दैनिक जीवन में बहुत ही रहता है। अतः साधारण लोग इससे फायदा उठाते हुए पाये जाते हैं। जैसे कोई आदमी दो-तीन दिनों तक खाने के समय मांस के दो टुकड़े भी जब-जब खा लेता है तब-तब उसे पेट दर्द होने लगता है। फिर दो-तीन दिनों तक मांस नहीं खाकर देखता है, उसे तब पेट दर्द नहीं होता है। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि मांस खाना ही पेट दर्द का कारण है. क्योंकि एक के रहने से दूसरा भी रहता है और उसके नहीं रहने से दूसरा नहीं रहता है। इसके अवगुण या दोष 1. निरीक्षण पर आधारित होने के कारण इस विधि में निरीक्षण की भूल हो सकती है। हो सकता है कि आवश्यक बातें देखने को छूट जाएं। निरीक्षण की घटना पर हमारा नियंत्रण नहीं रहता है। फलतः सूक्ष्म तथ्यों के नहीं देखने की भूल हो सकती है। 2. इस विधि में सह-परिणामों को कारण-कार्य मान लेने की गलती हो सकती है। सहगामी विचरण विधि हम जानते हैं कि प्रत्येक कार्य का कोई न कोई कारण होता है। चूंकि बिना कारण कार्य की उत्पत्ति सम्भव नहीं है, क्योंकि कारण में कार्य को उत्पन्न करने की शक्ति है। हम यह भी जानते हैं कि जिस क्षेत्र में घटनाओं के परिमाण की माप हो सकती है, वहां अन्वय विधि और व्यतिरेक विधि का एक-दूसरे रीति से प्रयोग होता है, जिसे हम सहगामी विचरणा विधि कहते हैं। J.S. Mill के 916GT "Whatever phenomenon on varies in any manner whenever another phenomenon varies in same particular manner, is either a cause or an effect of that phenomenon or is connected with it through some fact of causation."121 135