________________ अभावात्मक उदाहरण शीत में सोना और पूर्ववर्ती अनुवर्ती ह, फ, म त, थ, द ज, क, ख ग, घ, त म, च, ख ल, ट, य उपर्युक्त उदाहरण में भावात्मक एवं अभावात्मक दोनों तरह की बातें विद्यमान हैं। एक में "स' का भाव है और दूसरे में अभाव। जिस उदाहरणों में 'स' का भाव है, केवल 'प' उन सबमें उपस्थित है। साथ ही साथ जिन उदाहरणों में 'स' का अभाव है, केवल 'प' का ही उन सबमें अभाव है। इसलिए 'प' को हम 'स' का कारण कहेंगे। यही अन्वय-व्यतिरेक विधि या संयुक्त अन्वय-व्यतिरेक विधि का काम है। एक यथार्थ उदाहरण के द्वारा इसे और स्पष्ट किया जा सकता है-एक मनुष्य अनेक उदाहरणों में देखता है कि जब कभी भी वह बाहर शीत में सोता है तब उसे सर्दी हो जाती है। इससे वह इस निष्कर्ष पर पहुंचता है कि शीत में सोना ही सर्दी होने का कारण है। यहां हम देखते हैं कि शीत में सोना और सर्दी के होने में कार्य-कारण-सम्बन्ध का होना अन्वय विधि के आधार पर कहा गया है। अब फिर अभावात्मक उदाहरणों को देखते हैं तो पाते हैं कि जब वह शीत में नहीं सोता है तब उसे सर्दी नहीं होती है। इन दोनों (भावात्मक एवं अभावात्मक) उदाहरणों के आधार पर वह शीत में सोने को सदी होने का कारण मानता है। इस तरह हम देखते हैं कि जहां अन्वय-विधि में केवल भावात्मक उदाहरण को लिया जाता है और व्यतिरेक विधि में मात्र अभावात्मक उदाहरण को किन्त सम्मिलित या संयुक्त अन्वय-व्यतिरेक विधि में भावात्मक और अभावात्मक दोनों उदाहरणों को देखा जाता है। इसके (संयुक्त अन्वय-व्यतिरेक विधि) के निम्नलिखित गुण हैं1. जिस प्रकार अन्वय विधि निरीक्षण प्रधान विधि है, उसी प्रकार यह विधि भी निरीक्षण प्रधान विधि है। हम जानते हैं कि निरीक्षण का क्षेत्र प्रयोग से बड़ा है। अतः संयुक्त अन्वय-व्यतिरेक विधि का, जिसका सम्बन्ध निरीक्षण से है, क्षेत्र बड़ा है। 2. अन्वय-विधि से प्राप्त निष्कर्ष को यह विधि अधिक सबल बना देती है। एक अर्थ में अन्वय-विधि के निष्कर्ष की जांच इस विधि के द्वारा होती है। यदि दो घटनाएँ (एक पूर्ववर्ती और दूसरी अनुवर्ती) बराबर साथ पाई जाती है तो अन्वय विधि के अनुसार उनमें गया है। अब विकारण-सम्बन्ध का होना अव 134