________________ ह्यूम के दर्शन का निष्कर्ष है-'सर्वम् क्षणिकम्'। इसलिए इसे शून्यवाद भी कहा गया है। देकार्त, लॉक और बर्कले ने दर्शन की विशाल आधुनिक इमारत खड़ी की थी, पर ह्यूम ने उसकी नींव को हिला दिया है। उनके हथौड़े के आघात से वह इमारत ध्वस्त होकर श्मशान बन गयी है। पर यहाँ आपत्ति की जा सकती है कि ह्यूम गणितिक ज्ञान को असंदिग्ध मानते थे और इसलिए दर्शन की ईमारत के खण्डहर में अभी भी कुछ संरक्षित भाग खड़ा दृष्टिगत हो रहा है। ह्यूम के लिए कारण-कार्य का सम्बन्ध विशेष स्थान रखता है क्योंकि इसका सम्बन्ध यथार्थ पदार्थ से रहता है। फिर इसी के आधार पर साक्षात् प्रत्यक्ष से परोक्ष के संभाव्य प्रत्यक्षों की ओर हम प्रगति करते हैं और प्रत्यक्ष सम्बन्धी सार्वभौमिक नियमों की स्थापना करते हैं। जैसे-हम नियम बनाते हैं कि सभी वस्तुओं में गुरुत्वाकर्षण की शक्ति है या मलेरिया कुनैन से छुटता है। यदि वस्तु और गुरुत्वाकर्षण में संघर्ष हो तो हमारा नियम सत्य ठहरता है, अन्यथा नहीं। विज्ञानों में नियमों की स्थापना की जाती है और नियम का सम्बन्ध कारण-कार्य से है। यदि काराण-कार्य की धारणा सिद्ध ठहरती है तो वैज्ञानिक नियम भी सत्य ठहरते हैं, नहीं तो वे भी संदेहात्मक ही ठहरेंगे। यदि कारण-कार्य का सम्बन्ध सही हो तो इसे प्रत्यक्ष पर आधारित होना चाहिए। अतः हमें देखना है कि यह किस पर आधारित है। क्या कोई ऐसा गण वस्तुओं में है, जिसकी वजह से हम कहते हैं कि वे कारण हैं? पर ऐसा कोई गण हमें नहीं दीख पड़ता है, क्योंकि हम विभिन्न वस्तुओं को कारण समझते हैं, जिनमें कोई भी गुण सामान्य रीति से नहीं पाये जाते हैं। अब यदि वस्तुओं में कोई ऐसा गुण नहीं है, जिसकी वजह से हम उन्हें कारण समझते हैं, तो शायद वस्तुओं के बीच ऐसा सम्बन्ध होगा, जिसकी वजह से हम एक वस्तु को दूसरी वस्तु का कारण समझते हैं। पहली बात है कि जिन वस्तुओं को हम कारण-कार्य समझते हैं, उनमें सामीप्य का सम्बन्ध पाया जाता है। जैसे, सूर्य और ताप, ज्वाला और दाह इत्यादि। फिर कारण कार्यवाली वस्तुओं में पूर्वापर (Sucession) सम्बन्ध पाया जाता है। कारण पूर्व होता है और तब उसके बाद कार्य आता है। अतः सामीप्य और पूर्ववर्तिता (Priority) दो घटनाओं के बीच ऐसे संबंध हैं, जो कारण-कार्य की धारणा में मौजूद कहे जा सकते हैं। इन दो सम्बन्धों को छोड़कर तीसरा महत्त्वपूर्ण सम्बन्ध भी इनमें मौजूद-समझा जाता है और वह है शक्ति या अनिवार्य लगाव (Power or necessary connection) | कारण में समझा जाता है कि कोई एक शक्ति है, जिस पर उत्पादक शक्ति या अनिवार्य लगाव को आधारित रखा जा सकता है? यदि हम कैरम या बिलिअर्ड की गोटियों में कारणात्मक लगाव को देखें तो पाते हैं कि एक गोटी में दूसरी गोटी के धक्के से गति उत्पन्न होती है। परन्तु हम धक्का देने वाली और धक्का खाने वाली गोटी से कोई शक्ति निकलकर धक्का खाने वाली गोटी में घुस जाये। कारण कार्य की धारणा में उत्पादक शक्ति तथा अनिवार्य लगाव को ही मुख्य लक्षण माना जाता है। परन्तु उन्हें हम किसी भी प्रत्यक्ष पर आधारित नहीं 120