________________ कारणांश ये हैं-बंदूक की नली का ठीक होना, कारतूस को यथास्थान रखना, बारूद का सूखा होना, घोड़े को दबाना इत्यादि। इन कारणांशों के रहने से ही कार्य (आदमी का मरना) का होना संभव हो सकता है। यानि यह वह कारणांश है, जिसकी उपस्थिति से कार्य पैदा होता है। (2) अभावात्मक कारणांश-यह कारण का वह अंश है, जिसकी अनुपस्थिति में कार्य होता है। इनका नहीं रहना ही कार्य की उत्पत्ति में सहायक होता है। किसी कार्य का वह परिस्थिति कारण नहीं हो सकती जो कार्य के न होने पर भी उपस्थित हो। अब हमें यहाँ '2' का कारण ढूँढ़ने के लिए अपनी सामग्री तैयार करनी है। कारण के उपर्युक्त दो सिद्धान्त बतलाते हैं कि हमें दो बातें करना चाहिए। (1) जहाँ-जहाँ 2 उपस्थित है, उन स्थितियों की आपस में तुलना की जाय (11), के साथ घटित होने वाली उन परिस्थिति की तुलना उन दूसरी परिस्थितियों से की जाय, जिनमें अन्य बहुत से पहलुओं में समानता है। पर '2' नहीं है। इसी के लिए पाँच विधियाँ का उल्लेख किया गया है, वे हैं (1) अन्वय-विधि (2) व्यतिरेक विधि (3) अन्वय-व्यतिरेक विधि (4) सह-परिवर्तन विधि (5) अवशेष-विधि। अतः कारण सम्बन्ध का पता लगाना ही वैज्ञानिक आगमन का लक्ष्य है। इस लक्ष्य तक पहुँचने के लिये आगमन तर्कशास्त्र में भिन्न-भिन्न रीतियाँ बतलाई गयी है-इनमें उपर्युक्त प्रायोगिक विधि भी अपना महत्त्व रखता है। मिल की दृष्टि में यह निराकरण की विधि है। अवस्थाओं को अलग-अलग करना ही निराकरण है। 118