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पाश्चात्य दर्शन में इसके चार प्रमुख समर्थकों के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं-सी.एस. पीयर्स, विलियम जेम्स, जॉन डीवी तथा एफ.सी.एस. शिलर। इनके सामान्य विचार उपर्युक्त विवेचनों से स्पष्ट हो गए हैं। फिर भी इनके विशिष्ट विचारों का संक्षिप्त विवेचन प्रस्तुत करना आवश्यक प्रतीत होता है। पीयर्स को व्यवहारवाद का जन्मदाता ही माना जाता है। पीयर्स ने ही अपने लेख "How to make our ideal clear" में सर्वप्रथम “प्रैग्मेटिज्म' शब्द का प्रयोग किया है। इनके विचारों पर काण्ट के व्यावहारिक बुद्धि की समीक्षा (Critique of practical reason) तथा डार्विन के विकासवाद का स्पष्ट प्रभाव दिखाई पड़ता है। इसकी स्पष्ट घोषणा है-"किसी भी प्रत्यय का अर्थ निश्चित करने के लिए इसका वस्तुओं के जगत् में प्रयोग करो और इसका जो भी परिणाम निकले, वही इस प्रत्यय के अर्थ का निर्माण करेगा।" व्यवहारवादियों का भी तो यही कहना है कि विचार कार्य रूप में जब सफल होते हैं तो वे सत्य हैं। (If ideas work, they are true.) इतना ही नहीं इन्होंने यह भी कहा है-"The real as that known in statements ordinary called true". व्यावहारिकतावाद को एक आन्दोलन का रूप देने तथा इसे लोकप्रिय बनाने का श्रेय जेम्स को दिया जाता है। जेम्स व्यवहारवादी पद्धति के लिए एक सूत्र देते हैं-Does it works? अर्थात् क्या यह कार्य करता है? या क्या इससे लाभ मिलेगा? इस प्रकार व्यावहारिक उपयोगिता ही सत्यता की कसौटी है। इनके अनुसार सत्य न तो किसी विचार या प्रत्यय की स्थायी सम्पत्ति है और न इसे कहीं बाहर खोजने की जरूरत है। सत्य घटनाओं के द्वारा प्रकट होता है। Russell के शब्दों में, True is one species of good, not a separat category. Truth happens to an idea, it is made true by events." सत्य का निर्माता मनुष्य स्वयं है। जेम्स ने स्वयं कहा है कि "Truth is made just as health, wealth and strength are made in the course of experience". अर्थात् अनुभव के साथ-साथ सत्य भी उसी प्रकार निर्मित होते हैं जिस प्रकार स्वास्थ्य, समृद्धि तथा शक्ति निर्मित होते हैं। इस प्रकार सत्यता निरपेक्ष एवं अपरिवर्तनशील न होकर सापेक्ष और परिवर्तनशील होता है। अतः जेम्स के अनुसार वे सभी विचार सत्य हैं, जो जीवन-धारा को आगे बढ़ाने में समर्थ हैं। भारत में चार्वाक आदि भौतिकवादी दार्शनिकों ने इसे इनके पूर्व ही स्वीकार कर चुके हैं।
एच.एम. भट्टाचार्य ने ठीक ही लिखा है-"In the Indian systems of thought too, pragmatism is not a new and distinct 'ism' most of the accounts of truth given by Indian writers having more or less pragmatic bearing." बौद्धों ने भी सत्य के व्यावहारिक पक्ष पर जोर दिया है। भट्टाचार्य जी के ही शब्दों में, "The Buddhist seems to replace of theoretic by the practical aspect of truth and is a pledged
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