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उत्तम मार्दव। Basunak - 4 mm********3***4.:* *** *******"Wa.***.** **** जानेपर भी वह अपनेको नतमस्तक न करके नष्टप्रायः होजाता है, इसीको मान कषाय कहते हैं।
इस कषायके उदय होते हुए विचार-शक्ति कम हो जाती है। देखो, लंकाधिपति प्रतिवासुदेव दशानन (रावण) जब सीताको हर लाया और जब मंदोदरी आदि समस्त स्वजनोंने उसे समझाया कि. सीता रामचंद्रको पीछे दे दो और अपने पवित्र कुलमें परस्त्री रूपी मल न लगाकर सुखपूर्वक राज्य करो या वनमें जाकर तपश्चरण करो इसीमें हित है, तब उसने यही उत्तर दिया कि
"जानि हैं कायर मुझे नृपगण सभी संग्रामसे; तासे लड़ना है मुझे धुन बांधके अब रामसे । जीतकर अर्पू सिया प्यारी जु उनके प्राणसे यश होय मेरा विश्वमें बेशक सियाके दानसे ॥"
अर्थात्---सब क्षत्रियगणोंको विदित होगया है कि रावण सीताको हर लाया है और राम लक्ष्मण युद्धके लिये भी आगये हैं सो यदि मैं सीताको अभी रामके पास पहुँचा दूं, तो क्षत्रियगण मुझे कायर समझकर हास्य करेंगे, इसलिये मैं रामचंद्र लक्ष्मणको युद्धमें जीतकर, सीता और उसके साथ बहुतसा द्रव्य देकर उन्हें बिदा करूंगा । किन्तु इस समय तो सीताको न भेजकर केवल युद्ध करना ही अभीष्ट है इत्यादि । और इस प्रकार उस महापुरुषने अन्त तक-. पाण जाते हुए भी अपने प्रणको नहीं छोड़ा तथा वीरभूमि (रणक्षेत्र)में ही मृत्युको प्राप्त हुआ।
इसीलिये संसारमें मानी पुरुषों को लोग रावणकी उपमा देकर