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________________ श्रीदशलक्षण धर्म | 'आकिंचन छत्र चमर न धरण । १३२ ] མནན་། ག་ ་ ང ་ན་ 1„„ आकिंचन भूपतिपद न तरण || आकिचन मम न विपय, पास. । - 1 आकिंचन मुनितत्त विपयत्रास ॥ ५ ॥ . 1 आकिंचन धरणी शयन शुद्ध । आकिंचन मम नहि शयन शुद्ध ॥ आकिंचन सज्जन तरह नेद । आकिंचन मुनि नहि कर खेद || ६ || धत्ता । आकिंचन श्रीमुनिसुधन, भण्डार रत्नत्रय भूपणविमल | श्री अभयनंदी, यतिवरगत दूपण, सुमतिसार हृदि जिनकमल ॥७॥ ॐ ह्रीं उत्तम आकिंचनधर्माय महार्घं !. 'अथ ब्रह्मचर्य पूजा | स्त्रीविरक्तं जगत्पूज्यं ब्रह्मचर्य महाव्रतं । पूजया परया भक्त्या पूजयामि तदाप्तये || ॐ ह्रीं उत्तम · ब्रह्मचर्यधर्म अत्र अवतर अवतर संवौषट् (आह्वाननं) अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्वाहा (स्थापनं), अत्र मम सन्निहितो भव भव षट् ( सन्निधिकरण ) शुद्धतघरं धीरं श्रीभरताधिपसुन्दरं ।.. ब्रह्मचर्य व्रतागारं पूजयामि शिवंकरं ॥ १ ॥
SR No.009498
Book TitleDash Lakshan Dharm athwa Dash Dharm Dipak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepchand Varni
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages139
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, M000, & M005
File Size6 MB
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