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दशधर्म-भजन |
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धर्म दश हैं मेरे घट में,
दशधर्म - भजन ।
( श्री० स्व० पूज्य प्र० सीतलप्रसादजी कृत )
इन्हें जानो अमर हो लो |
परम सुख शांतिकी छाया में,
यहीं उत्तम क्षमा मार्दव,
aah for अमल हो लो ॥ टेक ॥
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यहीं आर्जव यहीं सत है |
यहीं है शौच हितकारी,
परम संयम से मल धो लो ॥ १ ॥ यहीं तप त्याग आकिंचन,
यहीँ ब्रह्मचर्य गुण-पूरण । कहनको दश हैं एक ही ये,
तू आपेमें मगन हो जा,
निजातम मय इन्हें तो लो ॥ २ ॥
न कुछ कर राग कुलटाई |
सही वैरागी शक्ति से,
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उचित भवदधि से तर जाना,
अपनी शान सम कर लो ॥ ३ ॥
जहां हर दम असाता है ।
सुखोदधि में मगन होकर,
परम अमृत सदा चख लो ॥ ४ ॥
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