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४.
"किं बहुणा भणिएणं,
इक्कं गुणानुरायं,
किं वा तविएणं कि वा दाणेणं ।
सिक्खह सुक्खाणं कुलभवणं" ||४||
क्या होगा अत्यधिक पढ़ने से, तप करने से और दान से१
एक सगुणानुराग को हृदयंगम करने का प्रयास करो क्योंकि गुणानुराग सभी सुखों का भवन है ।
4. What is the use of excessive study, penance and benevolence?
Focus exclusively on attaining one thing:
The ability to appreciate the good qualities of others. This ability is the abode of all happiness.
५.
"जड़ चरसि तवं विउलं, न धरसि गुणानुरायं,
पदसि सुयं करिसि विविहकट्ठाई ।
परेसु ता निष्फलं सयलं” ॥५॥
हे जीव, यदि तू गुणीजनों के सगुणों के प्रति सच्या अनुराग नहीं रखता, तो.. तेरे द्वारा किये गए विपुल तप, स्वाध्याय तथा कायक्लेश निष्कल हैं ।
5. Penance, study and self-denial are fruitless, If you lack the ability
To appreciate the good qualities of others.
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