SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 231
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १) एक गाथा में सार (१७) सूत्रकृतांग : एक सम्पूर्ण आगम ——— - बुज्झिज्जत्ति तिउट्टिज्जा बंधणं परिजाणिया । किमाह बंधणं वीरो, किं वा जाणं तिउट्टई ? ।। — - सम्पूर्ण आगम का सार, सूत्रकृतांग का सम्पूर्ण तत्त्वचिन्तन इस गाथा में समाविष्ट हो गया है । देखने में आता है कि कुछ लोग ज्ञानी हैं, पर क्रिया में उदासीन हैं । कुछ लोगों में क्रिया है, पर वे ज्ञान में उदासीन हैं । दोनों प्रकार के मनुष्य बन्धन यानी अष्टकर्मबन्धन और आरम्भ - परिग्रह से दूर नहीं हो सकते । क्रियाजड के उदाहरण - मेरा तो तप हमेशा चालू रहता क्या तप को समझा ? रसनेन्द्रिय पर संयम आया ? मैं तो मन्दिर गये बिना पानी भी नहीं क्या भगवान को समझा ? मैं तो रोज की चार सामायिक करती हूँ पीती क्या समताभाव आया ? हंसा नहार मैं तो जैनॉलॉजी की परीक्षा में हमेशा प्रथम कुछ आया ? शुष्कज्ञानी का उदाहरण आती हूँ - आचार में जैनदर्शन का एक महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त 'ज्ञानक्रियाभ्यां मोक्षः ।' २) तीन अध्याय जिसमें अन्य मतों, दर्शन एवं उनकी मान्यताओं की चर्चा - अ) स्वसमय और परसमय का प्रतिपादन है ऐसा प्रथम श्रुतस्कन्ध का प्रथम 'समय' अध्ययन । ब) जहाँ अनेक दर्शनों या दृष्टियों का संगम होता है ऐसा प्रथम श्रुतस्कन्ध का बारहवाँ ‘समवसरण’ अध्ययन । २२३
SR No.009489
Book TitleArddhmagadhi Aagama che Vividh Aayam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNalini Joshi
PublisherFirodaya Prakashan
Publication Year2014
Total Pages240
LanguageMarathi
ClassificationBook_Other
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy