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________________ (५) जलसम्बन्धी विचार (वैदिक और जैन संदर्भ में) मनीषा कुलकर्णी वैदिकों के वैष्णव और शैव इन पन्थों में यह दृढ मान्यता है कि पानी से बाह्य परिसर, शरीर एवं मन की शुद्धि होती है । गणपति- -पूजन के पहले पूजास्थल, पूजासाधन आदि की शुद्धि पानी - प्रोक्षण के द्वारा करते हैं । उसके लिए यह मन्त्र प्रयुक्त होता है - अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थांगतोऽपि वा । यद् स्मरेत् पुंडरिकाक्षं सबाह्याभ्यंतरः शुचिः । इसके बाद वरुणपूजा एवं कलशपूजा करते हैं । इसमें वैदिकादि कहते हैं कि ।। वरुणाय नमः ।। कलशाय नमः ।। गंगे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति । नर्मदे सिंधु कावेरि जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरु ।। वरुणपूजा लगभग सभी धार्मिक विधियों में करने का विधान है । वेदों के अनुसार वरुणदेवता ऋतसम्बन्धी एवं जलसम्बन्धी देवता है । वरुण के आधार से सब जगत् टिका है । वैष्णव लोग विहार करते समय हमेशा कमंडलु का पानी भूमिशुद्धि करते हैं । वैष्णव लोग सीधा पानी डालते हैं तो शैव लोग I समांतर पानी डालते हैं । अस्तु ! जैनशास्त्र के अनुसार पानी यह जड पंचमहाभूत नहीं है । पानी के शरीरवाले जीवों को वे अपकायिक जीव कहते हैं । उपरोक्त रूढियों का कठोर खंडन जैनग्रन्थों में पाया जाता है । 'उदगेण जे सिद्धिं उदाहरंति' - यह गाथा १०१
SR No.009489
Book TitleArddhmagadhi Aagama che Vividh Aayam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNalini Joshi
PublisherFirodaya Prakashan
Publication Year2014
Total Pages240
LanguageMarathi
ClassificationBook_Other
File Size1 MB
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