SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 31
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ NAYANE SARADATIMRO * फाल्गुन-मास नौवाँ चौपाई फाल्गुन चाले सीतल बाय | थर थर कम्पे सबकी काय। तब भव बंध विदारणहार। त्यागें मूढ़ महाव्रत धार।। अर्थः- फाल्गुन के महिने में शीतल वायु के चलने पर सब जीवों की काया थरथर कांपती है और तब धारण किये हुए संसार के बंध का विदारण करने वाले महाव्रतों को मूर्ख जीव छोड़ देते हैं। गीता छंद धार परिग्रह व्रत विसारें, अग्नि चहुँदिशि जारहीं। करें मूढ़ शीत वितीत, दुर्गति गहें हाथ पसारहीं। सो होय प्रेत पिशाच भूत रु, ऊत शुभ गति टारके। कुल आपने की रीति चालो, राजनीति विचार के।। अर्थ:- वे मूढ़ परिग्रह को धारण करके व्रतों को भूल जाते हैं और चारों दिशाओं में अग्नि को जलाकर शीतकाल को इस प्रकार बिताते हैं मानो हाथ फैलाकर दुर्गति को ही ग्रहण करते हों सो वे शुभ गति को टालकर प्रेत, पिशाच, भूत और ऊत हो जाते हैं इसलिए तुम राजनीति के अनुसार राज्य करके अपने कुल की रीति का अनुसरण करो। चौपाई कर हे मतिवन्त ! कहा तुम कही। प्रलय पवन की वेदन सही। धारी मच्छ-कच्छ की काय। सहे दुःख जलचर परजाय।। अर्थः- हे मतिवंत ! फाल्गुन मास के शीतल वायु के अल्प दुःखों की यह आपने क्या बात कही हमने तो प्रलयकालीन पवन की वेदना भी सही है। मगरमच्छ और कछुए आदि की काय धारण करके जलचर पर्याय में हमने दुःख सहे हैं। गीता छंद पाय पशु परजाय परबस, रहे सींग बंधाय के। जहाँ रोम रोम शरीर कम्पे, मरे तन तरफाय के। फिर गेर चाम उचेर स्वान, सियार मिल शोणित पिया। तुमरी समझ सोई समझ हमरी, हमें न प पद क्यों दिया।। अर्थः- पशु की पर्याय प्राप्त करके हमें कर्मवश सींग बंधवाके रहना पड़ता था जहाँ शरीर का रोम-रोम कांपता था, तड़फ-तड़फ कर प्राणों का विनाश हो जाता था और फिर शरीर को प थ्वी पर गिराकर चमड़ी उधेड़कर (AE | कुत्ते और सियार मिलकर उसका खून पी जाते थे इसलिए जो आपकी | समझ है सो ही हमारी भी समझ है, हमें आप राज्यपद क्यों दे रहे है ! अर्थः- १वायु। २जला लेते हैं। ३.बिताते हैं। ४.कछुआ। ५.चमड़ा उधेड़कर। ६.कुत्ता। ७.खून। COINiva
SR No.009488
Book TitleVajradant Chakravarti Barahmasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNainsukh Yati, Kundalata Jain, Abha Jain
PublisherKundalata and Abha Jain
Publication Year
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size184 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy