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Mer RAMMMMRIKगसिर-मास आठवा कामाला
मगसिर-मास आठवा
चौपाई माघ सधै न सुरन तैं सोय। भोगभूमियन तैं नहिं होय।
हर' हरि अरु प्रतिहरि से वीर। संयम हेत धरें नहिं धीर।। अर्थः- माघ के महिने में पिता कहते हैं कि 'संयम देवताओं से नहीं मिल सधता, भोगभूमिया जीवों से नहीं हो पाता और रुद्र, नारायण एवं प्रतिनारायण जैसे महान् वीर भी संयम के लिए धैर्य धारण नहीं कर पाते।
गीता छंद संयम कू धीरज नहिं धरें, नहिं टरें रण में युद्ध सूं। जो शत्रुगण गजराज कू, दलमलें पकर विरुद्ध सूं। पुनि कोटि सिल मुद्गर समानी, देय फैंक उपार के।
कुल आपने की रीति चालो, राजनीति विचार के।। अर्थः- ये नारायण एवं प्रतिनारायण आदि रणभूमि में तो युद्ध से टलते नहीं हैं, विरूद्ध शत्रुओं के समूह एवं हाथियों को पकड़कर मसल देते हैं और कोटिशिला को मुद्गर के समान उखाड़कर फैंक देते हैं परन्तु संयम के लिए धैर्य धारण नहीं कर पाते तो जब ऐसे महापुरुषों की ही यह कथा है तो तुम जैसों की क्या बात ! अतः तुम राजनीति के अनुसार राज्य करके अपने कुल की रीति का अनुसरण करो।
चौपाई तक बंध योग उद्यम नहिं करें। एतो तात करम फल भरें।
बांधे पूरव भव गति जिसी। भुगतें जीव जगत में तिसी।। अर्थ:- कर्म बंध के कारण ही ये नारायण और प्रतिनारायण जैसे महापुरुष योग का उद्यम नहीं करते और हे तात ! वे कर्म के ही फल को भोगते हैं। पूर्व भव में जीव जैसी गति बांधता है संसार में अगले भव में वैसी ही भोगता है।
गीता छंद जीव भुगतें कर्म फल कहो, कौन विधि संयम धरें। जिन बंध जैसा बांधियो, तैसा ही सुख दुःख सो भरें। यों जान सब को बंध में, निबंध का उद्यम किया।
तुमरी समझ सोई समझ हमरी, हमें न पपद क्यों दिया।। अर्थ:- जब संसार में जीव कर्मफल को ही भोगते हैं तो फिर कहो ! किस विधि से वे सयंम को धारण कर पाएंगे। जिसने भी जैसा कर्म का बंधन किया है वैसा ही सुख-दुःख वह भोगता है इस प्रकार सब ही जीवों को बंधमय
जानकर आप निबंध अर्थात् मुक्त होने का उपाय कर रहे हैं सो जो NO. आपकी समझ है सो ही हमारी भी समझ है, हमें आप राज्यपद क्यों JAR दे रहे हैं!
अर्थ:- १. रुद्र। २.नारायण। 3.प्रतिनारायण।
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