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उत्सूत्रभाषी)
(१) जिनसूत्र का उल्लंघन करके अंश मात्र भी उपदेश देना जिनवर की आज्ञा का भंग करना है और जिनवर की आज्ञा के सिवाय यदि कोई कषाय के वशीभूत होकर एक अक्षर भी कहे तो उससे इतना पाप होता है कि जिससे यह जीव निगोद चला जाता है। गाथा ११।। (२) जो पुरुष सूत्र का उल्लंघन करके उपदेश देता है उसकी क्षमा भी रागादि दोष और मिथ्यात्व का ठिकाना है और जिनसूत्र के अनुसार उपदेश देने वाले उत्तम वक्ता का रोष भी क्षमा का भंडार है ||१४|| (३) जैसे लोक में श्रेष्ठ मणि सहित भी विषधर त्याज्य होता है वैसे ही बहुत क्षमादि गुणों और व्याकरणादि अनेक विद्याओं का स्थान भी उत्सूत्रभाषी अर्थात् जिनसूत्र का उल्लघन करके उपदेश देने वाला पुरुष त्याज्य होता है ।।१८।। (४) सूत्र के विरुद्ध बोलने में जिन्हें शंका नहीं होती और यद्वा-तद्वा
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