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रे जीव ! एक ही जिनराज का कहा हुआ जो धर्म सो संसार के समस्त दुःखों को हरता है।
सकल सुख का कारण जो जिनधर्म उसको पा करके भी जो सुख के लिए अन्य देवादि को पूजते हैं वे गाँठ का सुख खोते हैं।
जो पुरुष जिनधर्मियों की सहायता करता है
उसका नाम लेने से
मोह मंद पड़ता है और उसके गुण गाने से हमारे कर्म गल जाते हैं।
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सरागियों
का कहा हुआ मिथ्याधर्म विषमिश्रित भोजन है, वर्तमान में भला दिखता है परन्तु परिपाक में खोटा है।