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संसारी जीव हैं वे प्रयोजन के लोभ से पुत्रादि स्वजनों के मोह को ग्रहण करते हैं परन्तु यथार्थ जिनधर्म को अंगीकार नहीं करते सो हाय ! हाय !! यह मोह
का माहात्म्य है।
- समस्त जीव सुखी होना चाहते हैं परन्तु सुख के कारण जिनधर्म का तो सेवन नहीं करते और पापबंध के कारण पुत्रादि के स्नेह को ही करते हैं।
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