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परमार्थ जानने की शक्ति न हो तो व्यवहार जानना ही भला है।
धर्म तो जिनभाषित वीतराग भाव रूप ही है।
जो धर्म का उपदेश देता है वह परम हितकारी
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साधर्मी के प्रति अहितबुद्धि न रखना।
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जिनधर्मियों का नाम लेने से जीव का कल्याण होता
है।
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