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गाथा १४३
जगत में स्वर्ण-रत्न आदि वस्तुओं का विस्तार तो सब ही सुलभ है
परन्तु जो सुमार्ग में रत हैं अर्थात् जिनमार्ग में यथार्थतया प्रवर्तते हैं उनका मिलाप निश्चय से नित्य ही अत्यन्त दुर्लभ है।
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नि-ज्ञान-चारित्र ही जिनमार्ग है।
सम्यक् दर्शन-ज्ञान-चारित