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गाथा १०८
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→ मेरे तो समझ में ही नहीं आता कि मैं कर्ता कैसे नहीं हूँ
जिनराज ही हैं प्रिय जिनको ऐसे निर्ग्रन्थ सद्गुरु का उपदेश होने पर भी किन्हीं जीवों के सम्यक्त्व उल्लसित नहीं होता अथवा
सूर्य का प्रकाश क्या उल्लुओं के अंधत्व को हर सकता है अर्थात् नहीं हर सकता।