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गाथा ६७
आचार्य
उपदेश
धर्मदास
माला
ऐसे शास्त्रों की भी कई अधम मिथ्यादृष्टि आचरण में निन्दा
करते हैं सो हाय ! हाय !! निंदा करने से जो नरकादि के दुःख होते हैं उन्हें वे जीव
गिनते ही नहीं हैं।
कैसे हैं वे जीव ? अत्यंत मान और मोह रूपी राजा के द्वारा ठगाये गये हैं।