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गाथा ८८
जो पुरुष सम्यक्त्व रूपी रत्नराशि से सहित हैं
भगवद भक्ति में
लीन सम्यक्त्वी
वे धन-धान्यादि
वैभव से रहित होने
पर भी वास्तव में वैभव
सहित ही हैं
और
जो पुरुष सम्यक्त्व से रहित हैं
भगवान से विमुख धन में लीन मिथ्यादृष्टि
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धनादि सहित हों तो भी दरिद्री ही हैं।