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________________ 糕卐糕蛋糕糕業業業業業卐業業卐卐業 आचार्य कुन्दकुन्द अष्ट पाहुड़ स्वामी विरचित होने के कारणों का प्ररूपण है । (१३) तेरहवां ‘महापुंडरीक' नामक प्रकीर्णक है उसमें इन्द्रादि बड़ी ऋद्धि के धारक देवों में उत्पन्न होने के कारणों का प्ररूपण है । (१४) चौदहवां ‘निषिद्धिका' नामक प्रकीर्णक है उसमें अनेक प्रकार के दोषों की शुद्धता के निमित्त प्रायश्चित का प्ररूपण है। यह प्रायश्चित शास्त्र है, इसका 'निसीतिका' ऐसा भी नाम है । ऐसे अंगबाह्य श्रुत चौदह प्रकार का कहा तथा पूर्वों की उत्पति का पर्यायसमास ज्ञान से लगाकर पूर्व ज्ञान पर्यन्त जिन बीस भेदों का जिसमें विशेष रूप से वर्णन है उस श्रुतज्ञान का वर्णन 'गोम्मटसार' ग्रंथ में विस्तार से है वहाँ से जानना । । २ । । उत्थानिका आगे कहते हैं कि 'जो सूत्र में प्रवीण है वह संसार का नाश करता है : सुत्तम्मि जाणमाणो भवस्स भवणासणं च सो कुणदि । सूई जहा असुत्ता णासदि सुत्ते सहा णोवि ।।३।। सूत्रज्ञ जो वह नाश करता जगत की उत्पत्ति का । धागे सहित सूई न खोती, रहित उससे नष्ट हो । । ३ । । अर्थ जो पुरुष सूत्र को जानने वाला है, उसमें प्रवीण है वह संसार के उपजने का नाश करता है जैसे लोहे की सुई है सो 'सूत्र' अर्थात् डोरा उसके बिना हो तो नष्ट हो जाती है और डोरे सहित हो तो नष्ट नहीं होती- यह द ष्टांत है T भावार्थ जो सूत्र का ज्ञाता होता है वह संसार का नाश करता है। इसका द ष्टान्त इस प्रकार है कि 'यदि सुई डोरे सहित होती है तो द ष्टिगोचर होकर मिल जाती है, नष्ट नहीं होती और डोरे के बिना होती है तो दीखती नहीं, नष्ट हो जाती है - ऐसा जानना' ।। ३ ।। 卐業卐卐業 २-१४ 卐卐 新卐業業業業
SR No.009483
Book TitleAstapahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhabda, Kundalata Jain, Abha Jain
PublisherShailendra Piyushi Jain
Publication Year
Total Pages638
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size151 MB
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